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(४) लॉर्ड क्रू के नाम लॉर्ड ऍम्टहिलका पत्र

गोपनीय

अगस्त १२, १९०९

प्रिय लॉर्ड क्रू,

मैंने दो दिन पहले आपको एक पत्र लिखा था, जिसका उत्तर आपने बहुत कृपापूर्वक जल्दी और अपने हाथसे लिखकर दिया है, अत: आपको धन्यवादस्वरूप दो शब्द।

मैं निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता कि जो हल मैंने सुझाया है उसे भारतीय इस हद तक मान लेंगे कि आगे और माँग न करनेका वचन दे दें। चूँकि मैं अधिकृत मध्यस्थकी स्थिति में नहीं हूँ, इसलिए मैं इस प्रश्नको श्री गांधींके सामने न रखूँगा। लेकिन मेरा ख्याल यह है कि भारतीय समाज समग्रतः इस बेकारके संघर्षको ससम्मान त्यागनेका एक साधन मानकर मेरे हल्को प्रसन्नतासे स्वीकार कर लेगा। लेकिन श्री गांधी जैसे लोग तो उस बातके लिए आखिरी दमतक लड़ते रहेंगे, जिसे वे न्याय और अधिकार मानते हैं।

तथापि, मेरे खयालसे, यदि थोड़े-से तीर-बाँकुरोंकी टुकड़ीको सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता, इस कारण आपका बहुसंख्यक लोगोंको सन्तोष देनेसे हाथ खींच लेना आवश्यक नहीं है। अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके नेता जाने-पहचाने हैं। ट्रान्सवाल सरकार उनपर मुकदमे चलाना बन्द करके अनाक्रामक प्रतिरोधकी अड़चनोंका अन्त किसी भी क्षण कर सकती है। इसलिए मेरा खयाल है कि अगर आप मेरा सुझाया हुआ समझौता श्री गांधीसे बातचीत किये बिना अपनी मर्जीसे लागू करें तो ऐसी स्थिति पैदा हो जायेगी जिसमें श्री गांधी अपने सिद्धान्तोंको छोड़े बिना सक्रिय संघर्षसे हाथ खींच सकेंगे। ऐसी स्थिति स्वीकार कर लेंगे। मैं उनसे ऐसा करनेका आग्रह निश्चय ही करूँगा और आगे कोई [माँग] करनेमें उनको सहायता न दूँगा। दरअसल मैं उनसे कह भी चुका हूँ कि उनका तबतक आगे माँग करना बिल्कुल बेकार हैं, जबतक ऐसा समय नहीं आ जाता और ऐसी स्थितियाँ पैदा नहीं हो जातीं कि दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशी इस ओर पूरा ध्यान दे सकें।

हृदयसे आपका,
ऍम्टहिल

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल आफिस रेकर्ड्स, २९१/१४१

 
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