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परिशिष्ट २१

नेटालके प्रतिनिधियोंकी ओरसे वाइसरॉयको पत्र

वेस्टमिन्स्टर पैलेस होटल
४, विक्टोरिया स्ट्रीट
लन्दन, एस॰ डब्ल्यू॰
अगस्त २७, १९०९

सेवा में


परमश्रेष्ठ वाइसरॉय, महोदय भारत


लॉर्ड महोदय,

हमने पिछली डाकसे आपके निजी-सचिवकी मार्फत अपने नेटालवासी देशभाइयोंकी शिकायतोंके विवरण की एक प्रारम्भिक नकल भेजनेकी धृष्टता की थी। अब यह विवरण उपनिवेश मन्त्री और भारत-मन्त्रीको जिस रूपमें दिया गया है और उपनिवेश-मन्त्री के समक्ष जिस रूपमें पढ़ा गया है, उसकी १२ नकलें सेवामें भेज रहे हैं।

हम आपसे अर्ज अरते हैं कि आप इसपर अपनी समिति के साथ सहानुभूतिपूर्वक विचार करें और यह मामला जिस अविलम्ब कार्रवाईकी अपेक्षा रखता है वैसी कार्रवाई करें।

ब्रिटिश भारतीयोंकी आबादी नेटालकी आबादीका एक बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा है; इस उपनिवेश में उनकी बड़ी-बड़ी जायदादें और अन्य हित हैं और वे भारतके सभी प्रदेशोंसे आये हुए हैं। उनकी संख्या १००,०००से ज्यादा है, जिनमें से ६०,००० वे गिरमिटिया मजदूर हैं जिन्हें नेटाल सरकार यहाँ लाई है। और यह एक मानी हुई हकीकत है कि नेटालकी समृद्धि यदि पूरी तरह नहीं तो अधिकांशमें इन्हीं मजदूरोंपर, जिन्हें नेटाल भारतसे प्राप्त करता है, आधारित है।

जैसा कि इस विवरणसे प्रकट होगा, नेटालमें हमारी हस्तीको तीन प्रकारसे नष्ट करनेकी कोशिश की जा रही है। परवाना-कानूनके अन्यायपूर्ण और निरंकुश अमलके द्वारा धीरे-धीरे हमसे हमारा व्यापार छीना जा रहा है। इस कानूनने परवाना अधिकारीको और उसके नियोक्ताओंको, जो खुद ही हमारे व्यापारिक प्रतिस्पर्धी हैं, पुराने या नये व्यापारिक परवाने देने या न देनेके सम्बन्ध में अमर्यादित सत्ता दे रखी है और उसपर उपनिवेशके न्यायालयोंका कोई नियन्त्रण नहीं है। भारतीय मजदूरोंसे नेटालके भौतिक लाभके लिए गुलामोंकी तरह काम लिया जाता और गुलामोंकी ही तरह व्यवहार किया जाता है। लेकिन ज्यों ही वे नेटालके बागान-मालिकों या खानोंके स्वामियोंके साथ, जिन्हें वे सौंप दिये जाते थे, अपनी नौकरीकी अवधि पूरी कर चुकते हैं त्यों ही उनपर, उनकी पत्नियोंपर और उनके बच्चोंपर एक बहुत भारी कर थोप दिया जाता है, जिसका उद्देश्य उन्हें उपनिवेश में आजाद व्यक्तियोंकी तरह बसने और ईमानदारीसे अपनी जीविका कमानेसे रोकना है। और, हमारे किशोरों और युवकोंकी समुचित शिक्षाके लिए आवश्यक सामान्य सुविधाओंको छीनकर हमारी भावी प्रगतिका रास्ता लगभग पूरी तरहसे बन्द कर दिया गया है।

इसलिए हमारे रक्षकों और अभिभावकोंके रूप में यदि भारत-सरकार हमारे मामलेको अपने हाथमें नहीं लेती और इस बातका आग्रह नहीं करती कि नेटालके सत्ताधारी हमारे साथ मात्र न्याय करें तो फिर यह निश्चित है कि आगे-पीछे हमें धीरे-धीरे भूखों मारकर उपनिवेश छोड़नेके लिए लाचार कर दिया जायेगा। [इस अन्यायको दूर करानेके लिए] भारत-सरकारके हाथमें एक सोधा उपाय है; और वह है: अगर उपनिवेश भारतीय व्यापारियों और भारतीय मजदूरोंके साथ न्यायका व्यवहार करनेके लिए राजी न हो तो गिरमिटिया मजदूरोंका जो प्रवाह प्रतिवर्ष उमड़ कर यहाँ आ जाता है, उसे रोक दिया जाये। यह कोई नया उपाय नहीं है। कुछ वर्ष हुए, हमने