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परिशिष्ट २४

लॉर्ड क्रू की टिप्पणी

[लन्दन,]

श्री गांधी और श्री हवीव आज मुझसे मिलने आये। मैंने उन्हें श्री स्मटससे हुई अपनी बातचीतका परिणाम बताया। मैंने उन्हें बताया कि वे दो रियायतें देना चाहते हैं: (क) १९०७ के कानून २ की मंसूखी और (ख) हर साल छः पढ़े-लिखे एशियाइयोंका स्थायी निवासीके रूपमें प्रवेश। श्री गांधीने माना कि इन परिवर्तनोंका अर्थ वास्तव में एक कदम आगे बढ़ आना है, और उन्होंने कहा कि जहाँतक उनके व्यावहारिक प्रभावका सम्बन्ध है, वे उन्हें मंजूर करनेके लिए तैयार हैं। लेकिन उन्होंने और उनके साथीने जो रुख अपनाया है और जिसके लिए भारी कष्ट सहे जा चुके हैं उसको त्यागना सम्भव नहीं है—वह रुख है, कानूनकी निगाहमें समानताका, फिर चाहे वह समानता सैद्धान्तिक ही क्यों न हो। इसलिए वे उन रियायतोंके मिलनेपर भी इस समानताका आन्दोलन बन्द न करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि श्री स्मटसको भेजे गये लॉर्ड ऍम्टहिलके १० अगस्त, १९०९ के पत्रमें और उसके सहपत्र में जो योजना दी गई है वह मंजूर कर ली जायेगी, यद्यपि उसे कुछ लोगोंने, जैसे श्री गोखलेने, अनिच्छापूर्वक ही स्वीकार किया है। मैंने कहा कि प्रस्तावित प्रवेशके स्वरूपकी अवास्तविकताको नापसन्द करनेके अलावा ट्रान्सवालके मन्त्री इस प्रस्तावको जिस एक कारणसे नामंजूर भी कर सकते हैं वह है यह सम्भावना कि अगर प्रवेश-निषेध केवल अमली कार्रवाईका विषय रहा तो छ: की संख्या में वृद्धि के लिए सदा आन्दोलन किया जाता रहेगा। श्री गांधीने कहा कि इस संख्या में वृद्धि कर पाना कठिन बना दिया जाये, उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं, केवल सिद्धान्तमें समानता कायम रहनी चाहिए। असलमें अगर छः भारतीयोंको आने दिया जाये तो भारतीय यद्यपि दूसरे मामलों में सुधार करानेके लिए हलचल करेंगे, लेकिन प्रश्नका यह पक्ष अन्तिम रूपसे तय माना जायेगा। इसपर मैंने पूछा कि मान लीजिए ट्रान्सवालके मन्त्रियोंने जो-कुछ देनेके लिए कहा है, वे उससे आगे नहीं बढ़ते तो भारतीय इस प्रश्नको संघ बननेतक स्थगित करना पसन्द करेंगे या नहीं। श्री गांधीने कहा, कानूनको जैसा मैंने समझा है, उसमें एशियाइयोंका ट्रान्सवालमें प्रवेश सामान्य प्रवासी कानूनसे निषिद्ध किया गया है, भेदभावकारी व्यवहारसे नहीं, इसलिए वे इस मामले में संघके अन्तर्गत नहीं आते। मैंने बताया कि संघ द्वारा कोई ऐसा सामान्य प्रवासी कानून बनानेके मार्ग में कोई रुकावट नहीं है, जिसके अन्तर्गत वस्तुतः प्रवेश निषिद्ध हो, लेकिन राजनयिकोंका रुझान हो तो सैद्धान्तिक समानता भी कायम रहे। श्री गांधीने कहा कि इस बीच आन्दोलन महीनों चलता रहेगा।

श्री गांधीने बातचीत खत्म करते हुए कहा कि मैं ट्रान्सवालकी सरकारको तार दे दूँ कि वे श्री स्मटसके सुझावोंमें निहित व्यावहारिक प्रगतिको मंजूर करते हैं, लेकिन सैद्धान्तिक समानताका अब वे भी आग्रह रखेंगे।

मेरे मनपर यह प्रभाव पड़ा है कि इसके बावजूद ट्रान्सवाल सरकार दोनों रियायतें दे देगी तो ठीक होगा, क्योंकि इससे सब व्यावहारिक कठिनाइयों दूर हो जायेंगी और जनताके खासे बड़े हिस्सेकी राय सरकारके सम्बन्ध में ठीक हो जायेगी।

इसके अनुसार एक तारका मजमून लिख लिया जाये, जिसमें श्री गांधीके वक्तव्यका सार हो। उसमें इसके ऊपरके अन्तिम अनुच्छेदका सार भी जोड़ दिया जाये।

क्रू
१६ सितम्बर

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: २९१/४१