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परिशिष्ट २५

गांधीजीके नाम लॉर्ड ऍम्टहिलका पत्र

सितम्बर १७, १९०९

प्रिय श्री गांधी,

आपके कलके पत्रसे, जो मुझे अभी-अभी मिला है, मुझमें नई आशा और नये उत्साहका संचार हुआ है। सरकारका सारा ध्यान इस समय अपने दलके नाजुक भविष्य में लगा हुआ था, जिससे हमारा मामला खटाई में पड़ गया था और मैं उसके विषय में निराश हो चला था। यह सचमुच बड़े संतोषकी बात है कि लॉर्ड क्रू ने जनरल स्मट्सको, हमारा संशोधन मंजूर करनेका आग्रह करते हुए, तार करनेका वादा कर दिया। मैं सर जॉर्ज फेरारसे पत्र-व्यवहार करता रहा हूँ और मैंने स्कॉटलैंडसे लौटनेपर उनसे भेंट करनेकी व्यवस्था कर ली है। इससे आप समझ सकेंगे कि मैंने विरोधका मुकाबला करनेकी जरूरतको नजरअन्दाज नहीं किया है। अब यदि इस समय आप लॉर्ड मॉर्लेसे भेंट कर सकें और लॉर्ड क्रू की तरह यदि आप उनकी सहानुभूति भी प्राप्त कर सकें तो मैं मानता हूँ कि आप सारे सम्भव प्रयत्न कर चुकेंगे और इस देश से विदा होते हुए यह खयाल लेकर जा सकेंगे कि आपने ऐसा कोई उपाय बाकी नहीं छोड़ा है, जिससे किसी लाभकी उम्मीद की जा सकती थी। यदि आप जल्दी ही चले जानेवाले हैं तो मुझे डर है कि मैं आपसे दुबारा मिलनेका मौका न पा सकूँगा। मुझे इस बातका बड़ा अफसोस है। लेकिन काफी समयके बाद अब अन्त में मुझे कामसे एक अल्पकालिक छुट्टी लेनी पड़ रही है—यह छुट्टी इसी समय सम्भव है—और मैं कल एक पखवारेके लिए स्कॉटलैंड जा रहा हूँ। वहाँ मैं एक तरहसे पहुँचके बाहर हो जाऊँगा, इसलिए यदि आपके पत्रोंका जवाब देनेमें देरी हो तो आपको आश्चर्य न होना चाहिए।

मैं आपको और श्री हाजी हबीबको अपनी सम्पूर्ण शुभकामनाओं के साथ विदाईका नमस्कार करता हूँ और आशा करता हूँ कि हमारा अगला मिलन एक सम्मानजनक और उल्लेखनीय सफलतापर आनन्द मनानेके लिए ही होगा।

आपका विश्वस्त
ऍम्टहिल

श्री मो॰ क॰ गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०८१) से।