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हँसी या रोदन

राज्य में क्या खामियाँ हैं । आज उनके रोपे हुए वृक्षके फलका रसास्वादन सारी भारतीय जनता कर रही है । और कितने ही लोग उनसे भी आगे जानेको तैयार हैं ।

इन उदाहरणोंको ध्यान में रखते हुए नेटालके भारतीयोंको अपने मनमें ऐसा कमजोर विचार न आने देना चाहिए कि सभी करेंगे तभी बात बनेगी ; प्रत्युत उन सभी व्यापारियों और फेरीवालोंको, जो साहस करें, शपथ लेनी चाहिए ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-९-१९०८

१४. हँसी या रोदन ?

श्री दाउद मुहम्मद, श्री पारसी रुस्तमजी और श्री आंगलिया, ये तीनों सज्जन देशकी खातिर तीन-तीन महीने की कैद भोग रहे हैं । उनके साथ अन्य भारतीय भी हैं । वे पढ़े-लिखे लोग हैं । इसका अर्थ क्या है ? यदि ऐसी घटना गत जनवरी माससे पहले हुई होती तो भारतीय समाज में रोष फैल जाता । उस समय ऐसी घटना होती ही नहीं । अब समय आ गया है, इसलिए ऐसी घटना हुई है। फिर भी यह घाव दारुण है ।

इन वीर बाँकुरोंके स्त्रो-बच्चों और सगे-सम्बन्धियोंके विषयमें अथवा स्वयं उनको [जेलमें] जो कष्ट झेलने पड़ रहे हैं उनके बारेमें सोचकर सभी भारतीयोंको रोना आयेगा, सभी दुःखी होंगे । हम उनके सगे-सम्बन्धियोंके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं ।

किन्तु ये पन्द्रह लोग देशकी खातिर, देशकी प्रतिष्ठाकी खातिर जेल गये हैं और हँसते-हँसते गये हैं । यह जानकर सब भारतीय उमंगमें भरकर हँसेंगे । इस साहसपर इन भारतीयोंको, इनके सम्बन्धियोंको और भारतीय समाजको बधाई देनी चाहिए ।

हम हँसे और रोये, बातका अन्त हमें इतनेसे ही न मान लेना चाहिए । जो भारतीय जेल से बाहर हैं उनका कर्तव्य और भी कठोर होता जा रहा है । उनको जल्दी जेलसे मुक्त कराना हमारे हाथमें है । कोई परवाना (लाइसेंस) न ले, कोई अँगूठेकी या किसी और तरह की निशानी न दे तथा अपना हौसला बनाये रखे तो ताज्जुब नहीं कि वे कुछ समय में ही रिहा कर दिये जायें । यदि वे न छूटें तो इसमें भारतीय जातिकी हीनता है; उससे उसकी नाक कटेगी । हमें आशा है कि भारतीय लोग इन वीरोंके पीछे पूरा-पूरा जोर लगानेके लिए तैयार होकर रहेंगे ।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, १२-९-१९०८

१. जान पड़ता है, गांधीजीका तात्पर्यं तिलकसे था; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४१२-१३ ।

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