पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/६४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

परिशिष्ट २८

गांधीजीके नाम लार्ड ऍम्टहिलका पत्र

अक्तूबर ४, १९०९

प्रिय श्री गांधी,

आपके क्रमशः २१ तथा २२ सितम्बरके दोनों पत्रोंके लिए धन्यवाद। वे मुझे ठीक समयपर, जब मैं स्कॉटलैंडके पर्वतोंको पैदल पार कर रहा था, मिल गये थे। पहले पत्रमें आपने लॉर्ड मॉलेसे प्राप्त जवाबकी नकल भेजनेकी कृपाकी है। मैं मानता हूँ कि यह बात बहुत सन्तोषजनक है कि आपने लॉर्ड मॉलसे यह कहलवा लिया कि तात्त्विक तथा सामान्य कारणोंसे उनकी सहानुभूति आपके साथ है। यह कथन ऐसा है जो आपके लिए आगे मूल्यवान साबित होगा और मेरी सलाह है कि इसका विशेष ध्यान रखें।

दूसरे पत्र में आपने उस प्रश्नका उल्लेख किया है जो मैंने लार्ड सभाके सूचना-पत्रमें दर्ज करा रखा है। यह कोई नया प्रश्न नहीं; यह वही प्रश्न है जिसकी सूचना मैंने आपके इस देशमें आते ही दे दी थी और जिसे किसी भी आपत्कालीन स्थितिके लिए तैयार रहने तथा सरकारको यह याद दिलानेके लिए कि उक्त सवाल किसी भी समय उठाया जा सकता है, मैंने उक्त सूचना-पत्रपर रख छोड़ा है। आप जानते ही हैं, मैं कई बार लॉर्ड क्रू से पूछ चुका हूँ कि वे अभी इसका उत्तर देनेकी स्थिति में हैं या नहीं।

अब मैं उत्सुकतासे यह जाननेकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि आपके पास मेरे लिए कुछ नई खबर है या नहीं।

आपका विश्वस्त,
ऍम्टहिल

श्री मो॰ क॰ गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१०९) से।

परिशिष्ट २९

लन्दनमें गुजरातियोंकी सभा

'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित रिपोर्टका अंश

काठियावादके राजकोट शहरमें होनेवाली तीसरी गुजराती साहित्य परिषद्के लिए प्रोत्साहनकी माँग करते हुए परिषद् के मन्त्री श्री बलवन्तराय ठाकुरकी ओरसे बैरिस्टर श्री जेठालाल परीख तथा दूसरे गुजरातियोंके नाम पत्र आया था। तदनुसार वेस्टमिन्स्टर पैलेस होटलमें सर मंचरजी भावनगरीकी अध्यक्षतामें अक्तूबर ५ को गुजरातियोंकी एक सभा हुई।

अध्यक्षका आसन ग्रहण करनेके लिए अपना नाम सूचित किया जानेपर सर मंचरजी भावनगरीने अपने भाषण में कहा: "..." मैं जब छोटी उम्रका था तब मुझे गुजराती भाषाका शौक था। मैंने महारानी विक्टोरियाके यात्रा-वृत्तान्तका गुजराती में भाषान्तर किया था।...यह इस बातका प्रमाण है कि मुझे थोड़ी-बहुत गुजराती आती है। इसलिए मैंने अध्यक्षका स्थान ग्रहण करना स्वीकार किया।"

कुछ वर्ष हुए, गुजराती साहित्य परिषद् नामकी संस्था कायम हुई थी और वह तबसे काम करती आ रही है। हर साल उसकी बैठक होती है। इस संस्थाके काम में राजनीतिको कोई स्थान नहीं है। उसका मुख्य उद्देश्य