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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस प्रस्तावपर भावनगरके श्री जोरावरसिंहजी, नागपुरके श्री खापरडे, दक्षिण आफ्रिकाके श्री हाजी हबीब और श्री आंगलिया भी बोले।

श्री हाजी हवीबने कहा: "हमारी मातृभाषाकी रक्षाके ये प्रयत्न स्वागतयोग्य हैं।..."

श्री आंगलियाने कहा: "मुझे इस बातका अभिमान है कि मेरा जन्म गुजरातमें हुआ।..."

तीसरा प्रस्ताव

डॉ॰ घडियालीने तीसरा प्रस्ताव पेश किया:

"यदि गुजराती भाषाके विकासके लिए ऐसी संस्था स्थापित की जाये जिसका हरएक काम गुजराती में चले तो यहाँ उपस्थित गुजराती उसमें खुशीसे शामिल होंगे।" तीन व्यक्तियोंने इस प्रस्तावका विरोध किया इसलिए वह बहुमतसे पास हुआ।

अन्तमें श्री परीखने अध्यक्षका आभार माना, जिसके बाद ६-३० बजे सभा समाप्त हुई।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-११-१९०९ और १३-११-१९०९

परिशिष्ट ३०

'साउथ आफ्रिका' में प्रकाशित समाचार

भारतीयों की एक और मनगढ़न्त कहानीका भेद खुल गया। कुछ सप्ताह पहले दक्षिण आफ्रिकाके इस भागसे तार दे-देकर लन्दनके लोगोंके गले यह बात उतारी जा रही थी कि एक गरीब भारतीय युवक उपनिवेशके सामान्य कानूनको जान-बूझकर तोड़नेके जुर्ममें थोड़े दिनकी कैदकी सजा भोगता हुआ दुर्व्यवहारके कारण मारा गया है। ब्रिटिश जनताके भोले-भाले वर्गपर इस कहानीका कुछ भी असर हुआ हो, ऐसे वक्तव्योंके सम्बन्ध में सरकारी जाँच हुए बिना नहीं रह सकती थी। नागप्पन जेलसे छूटनेके थोड़े दिन बाद मर गया। उसके प्रति व्यवहारके सम्बन्ध में परिस्थितियोंकी जाँचके लिए मजिस्ट्रेट मेजर डिक्सन नियुक्त किये गये थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नागप्पनको एक चिकित्सा अधिकारीने स्वस्थ बताया था। यह साफ नहीं मालूम हो सका है कि जेलमें उक्त मृत व्यक्तिके पास दो कम्बल थे या नहीं। और यह राय किसी भी बातसे ठीक सिद्ध नहीं होती कि टाट पट्टियोंपर सोनेका हानिकारक प्रभाव हुआ होगा। यद्यपि चावल नहीं दिया जाता था, फिर भी पानी काफी दिया जाता था। मेजर डिक्सनने अभियुक्तपर हमला किया जानेका, और चूँकि वह शिविर-जेलसे स्पष्टतः स्वस्थ निकला था इसलिए वहाँ उसके बीमार होनेका आरोप भी बेबुनियाद पाया है। वे मानते हैं कि भारतीय गवाहों के आरोपोंका पूरी तरह खण्डन हो गया है। उक्त व्यक्तिको शेष सजाके अनुपात में जुर्माना देकर किसी भी वक्त जेलसे चले जानेका अधिकार था। जेलकी स्थितियोंकी जाँच कमिश्नरने की है। उन्होंने दो-तीन छोटे-छोटे सुधार सुझाये हैं। लेकिन उनका इस मामलेसे कोई सम्बन्ध नहीं है। एशियाइयोंके इस शोरगुल और इस मनगढन्त कहानीकी जाँचके नतीजेसे यह सिद्ध हुआ है कि उनका साथी अपना पुराने ढर्रेका जीवन आरम्भ करनेके समयकी अपेक्षा जेलमें और जेलसे छूटनेपर ज्यादा स्वस्थ था।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१०-१९०९