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१५. अदालतको सलाम करें

सर हेनरी बेलने सलाम करनेकी बाबत बड़ी सख्त राय जाहिर की है । उनके कानमें भनक पड़ी थी कि उनकी अदालत में प्रवेश करते समय किसी भारतीयने सलाम नहीं किया । इसलिए उन्होंने कहा कि भारतीयोंको, जो हमेशा सम्य गिने जाते हैं, अदालतके रुतबेका खयाल करना चाहिए । उन्हें अदालतके सम्मानमें या तो पगड़ी अथवा जूते उतारने चाहिए या दरवाजे से भीतर आते समय सलाम करना चाहिए । यदि वे तीनोंमें से कुछ नहीं करते हैं, तो उन्हें सजा दी जायेगी । सर हेनरीने [अंग्रेजी ] आज्ञाका अनुवाद करवाकर समस्त उपस्थित भारतीयों को सुनवाया। हरएक भारतीयको यह चेतावनी याद रखनी है। हर जगह न्यायालय में प्रवेश करते हुए [ न्यायाधीशको ] सलाम करनेकी प्रथाको निभाना अच्छा है । बहुत-से भारतीय प्रमादवश ऐसा नहीं करते शिष्टता दिखाना हमारा फर्ज है ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १२-९-१९०८


१६. हमारा झूठ

सर हेनरी बेलने भारतीय खूनके मामले में जो आलोचना की है, वह नजर-अन्दाज करने योग्य नहीं है । सर हेनरोने कहा कि कुछ भारतीय अपने मामलेको मदद पहुँचाने के लिए झूठ बोलते हैं ।" इसलिए बहुत बार सच्चे मुकदमे को भी धक्का पहुँचता है । यह बात कई बार ठीक उतरी है । यदि कोई भारतीय ऐसी बात कहकर अपना बचाव करे कि क्या गोरे अपने मामलों में ऐसा नहीं करते, तो वह बचाव ठीक नहीं माना जायेगा । गोरे बेशक झूठ बोलते हैं, किन्तु इसलिए हमें भी वैसी ही आदत डालना आवश्यक नहीं है । जीतेंगे कि नहीं, ऐसा विचार करनेके बदले, हम सचके सिवाय और कुछ नहीं कहेंगे, यही विचार शोभनीय है । सबसे अच्छा रास्ता तो यह है कि हम इस तरह चलें कि हमें किसी वकीलका घर अथवा अदालतका दरवाजा न देखना पड़े । ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि भारतीयोंपर कोई दीवानी या फौजदारी मामला अदालत में हो हो नहीं ? हम सत्याग्रहमें पड़े हैं । उसमें यह सब किया जा सकता है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १२-९-१९०८

१. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ४२०-२४ भी ।

२. भारतीयों द्वारा झूठी गवाही देनेसे सम्बन्धित लेखके लिए देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ११ ।

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