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१७. प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मन्त्रीको

जोहानिसबर्ग

सितम्बर १४,१९०८

[ परममाननीय उपनिवेश मन्त्री
लन्दन ]
ट्रान्सवालवासी पठानों और पंजाबियोंके निम्न-
हस्ताक्षरकर्ता प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र
नम्र निवेदन है कि:

१. एशियाई कानून संशोधन अधिनियम (एशियाटिक लॉ अमेंडमेंट ऐक्ट) के प्रसंगमें, और प्राथियोंको उनके विनम्र प्रतिवेदनके जवाबमें २६ मार्च, १९०८ को दिये गये निम्नलिखित उत्तरके सम्बन्ध में प्रार्थी महामहिम सम्राट्की सरकारसे आदरपूर्वक निवेदन करते हैं :

मुझे जो आदेश दिया गया है, उसके अनुसार आपको यह सूचित करनेका सम्मान प्राप्त हुआ है कि उपनिवेश-मन्त्रीको आपके १३ जनवरीके पत्रके साथ एशियाई पंजीयन अधिनियम' अन्तर्गत आपकी तथा अन्य लोगों की स्थितिसे सम्बन्धित प्रार्थनापत्र प्राप्त हो गया है । लॉर्ड एलगिनने परमश्रेष्ठ लॉर्ड सेल्बोर्नसे आपको यह सूचित करने का अनुरोध किया है कि उन्होंने आपके प्रार्थनापत्रको ध्यानपूर्वक पढ़ा है; किन्तु, विशेष रूपसे, कानून के अन्तर्गत पंजीयन सम्बन्धी कठिनाइयोंके हालमें ही हुए निराकरणको देखते हुए, अब उनको उसके सम्बन्धमें कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती ।

२. जिस प्रार्थनापत्रका उपर्युक्त उत्तर भेजा गया है उसमें प्रार्थियोंने इस प्रकार निवेदन किया था :

महामहिमके भारतीय सैनिक, सैनिक प्रतिष्ठाका खयाल रखते हुए, इस ढंगसे बाधित रूपसे पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) करवाकर अपनेको अपमानित नहीं करा सकते; और यदि महामहिमकी सरकार सम्राट्के ट्रान्सवाल-स्थित भारतीय सैनिकोंको न्यायोचित व्यवहार दिला सकने में असमर्थ हो तो वे मनुष्यके रूपमें और उन ब्रिटिश भारतीय सैनिकोंके नाते, जिन्हें साम्राज्य-रक्षाके लिए अपने प्राणोंकी बाजी लगाने और युद्धके कष्ट सहनेपर गर्व है, अनुरोध करते हैं कि उन्हें कारावास या निष्कासनके अपमानसे बचाया जाये, और वे यह भी इच्छा करते हैं कि सम्राट् आज्ञा दें कि उन्हें दक्षिण-आफ्रिका के किसी ऐसे समर-स्थलमें जनरल बोथा और जनरल स्मट्स द्वारा गोलीसे उड़ा

१. यह " सैनिकोंका प्रार्थनापत्र" शीर्षकसे छापा गया था, और खयाल है कि इसका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था । देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ३८४-८५ भी ।

२. एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट ।