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तारीखवार जीवन-वृत्तान्त
अक्तूबर १ : गांधीजीने टॉल्स्टॉयको सत्याग्रह आन्दोलन और उनके द्वारा लिखे " "एक हिन्दूके नाम पत्र" के बारेमें लिखा।
अली इमामके सम्मानमें दिये गये भोजमें भाषण दिया।
अक्तूबर ४: उपनिवेश कार्यालयने गांधीजीको सूचित किया कि स्मट्सके सुझावोंके अनुसार नया कानून बनाने-न-बनाने के बारेमें पहल करना उपनिवेश सरकारका काम है।
अक्तूबर ५: गांधीजीने प्रभावशाली व्यक्तियोंको ट्रान्सवालकी स्थितिसे अवगत करानेके लिए सार्वजनिक कार्रवाई प्रारम्भ करनेकी इच्छा व्यक्त करते हुए लॉर्ड ऍम्टहिलको पत्र लिखा।
लन्दनमें गुजरातियोंकी सभामें भाषण दिया और उन्हें अपनी मातृभाषाके प्रति अनुराग वृत्तिका विकास करनेकी सलाह दी।
अक्तूबर ६: पोलकके नाम एक पत्रमें इस बातपर जोर दिया कि भारतको चाहिए कि वह ट्रान्सवालके संघर्षको अपनी स्वतन्त्रताके आन्दोलनका ही एक हिस्सा समझे और उसमें मदद करे।
लॉर्ड ऍम्टहिलसे आगामी कार्यक्रम के बारेमें विचार-विमर्श किया।
द॰ आ॰ ब्रि॰ भा॰ संघने नेटालके शिष्टमण्डलके स्वागतका आयोजन किया।
अक्तूबर ७: गांधीजी महिला मताधिकारके सिलसिलेमें आयोजित सभामें गये। डोकने 'रैंड डेली मेल' को जेलमें काफिरों द्वारा गांधीजीपर किये गये हमलेके बारेमें लिखा।
टॉल्स्टॉयने गांधीजीके अक्तूबर १ के पत्रका उत्तर दिया।
अक्तूबर ८: गांधीजीने 'गुजराती पंच' को भेजे सन्देशमें कहा कि वे ट्रान्सवालमें चल रहे "जीवन मरणके संघर्ष" में पूरी तरह रत हैं।
उपनिवेश कार्यालयसे स्मट्सके बारेमें ठीक-ठीक रवैयेकी जानकारी माँगी "ट्रान्सवालके भारतीयोंके मामलेका विवरण" नामकी पुस्तिकाकी २००० प्रतियाँ मुद्रित करनेका आर्डर दिया।
इमर्सन क्लबकी सभामें कष्ट सहनका गुण-गान किया।
जिन ६७ चीनियोंपर एशियाई अध्यादेशके अन्तर्गत आरोप लगाया गया था, वे वरी कर दिये गये।
सैंडर्सन समितिकी भारतीय प्रवास सम्बन्धी जाँच पूरी होनेकी खबर; समितिके मतमें भारतसे मजदूर लाना बन्द करना गोरोंके लिए बहुत हानिकर।
अक्तूबर ११: मद्रासमें तुर्की वाणिज्यदूतकी अध्यक्षतामें सार्वजनिक सभा; पोलकने भाषण दिया।
अक्तूबर १२: मणिलाल गांधीको लिखे गये पत्रमें गांधीजीने कहा कि सुन्दर जीवन बिताना सीखना ही सच्ची शिक्षा है।
निर्वासित भारतीयोंकी मददके लिए कोष स्थापित।
अक्तूबर १३: गांधीजीने हैम्पस्टेडकी शान्ति और पंच फैसला समिति [पीस ऐंड आर्बिट्रेशन सोसाइटी] में "पूर्व और पश्चिम" पर भाषण दिया।
अक्तूबर १४: लॉर्ड ऍम्टहिलके नाम पत्रमें लिखा कि यदि अधिकार सिद्धान्तरूपमें स्वीकार नहीं किया जाता तो सत्याग्रह बन्द नहीं होगा।