श्री हाजी हबीब, श्री मौलवी साहब, श्री काछलिया, श्री अब्दुल गनी, श्री भाईजी, श्री शहाबुद्दीन इत्यादिके भाषण हुए और दोनों समाजोंके प्रतिनिधियोंने नीचे दिये गये दस्तावेजपर दस्तखत किये ।
हम कोंकणी तथा कानमिया कौमके नेतागण खुदाको साक्षी रखकर लिखते हैं कि इन दोनों कौमोंके नौजवानोंके बीच तकरार होनेका हमें दुःख है और हम एक-दूसरेसे माफी माँगते हैं और माफी चाहते हैं । हम अपनी-अपनी कौमके नौजवानोंको समझानेकी जिम्मेदारी लेते हैं और उनके [कार्यों के] लिए अपनेको उत्तरदायी मानते हैं । हम उन्हें सलाह देते हैं कि यदि उनका कोई अपमान हो जाये, तो वे हमें खबर दें, किन्तु एक-दूसरे से लड़ें नहीं ।
मैं इस दस्तावेजको बहुत महत्त्वपूर्ण मानता हूँ । यदि नेतागण इस प्रकार अपने कर्तव्यको समझते हैं, तो अन्तमें किसीका भला होना ही चाहिए । तरुणोंकी शोभा इस बात में है कि वे नेताओंके कौलका पालन करने के लिए लड़ाई-झगड़ा बिल्कुल बन्द कर दें। यदि पठान, कोंकणी और कानमिये अपनेको बड़ा बहादुर मानते हैं, तो उन्हें अपनी शक्तिका उपयोग कौमकी रक्षा करनेमें करना चाहिए । नेताओंको याद रखना चाहिए कि ऊपरका दस्तावेज खुदाको साक्षी रखकर लिखा गया है और इसलिए उनपर बहुत जबरदस्त जिम्मेदारी है । जवानोंको हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वे बिलकुल न झगड़ें। मैं आशा करता हूँ कि कानमिये कोंकणियों से मिलते हुए पहले सलाम करेंगे और कोंकणी कानमियोंसे मिलते हुए वैसा ही करेंगे । बैठक समाप्त होनेके बाद श्री हाजी हबीबने सभी सज्जनोंका चाय-बिस्कुट से सत्कार किया तथा श्री उस्मान अहमदने सुलह से सम्बन्धित गीत सुनाये ।
सार्वजनिक सभाका अधिक हाल दूसरे स्थानपर मिलेगा; तथापि मैं श्री अब्दुल गनीका किस्सा यहीं कह दे रहा हूँ ।" यह बात असंदिग्ध रूपसे सिद्ध हो गई है कि श्री अब्दुल गनोने अँगूठे को छाप दी है । उन्होंने सभासे इसकी माफी माँगी और पश्चात्ताप प्रकट किया । उन्होंने कहा कि उनका इरादा अँगूठेको छाप देनेका बिलकुल नहीं था, किन्तु आनेकी जल्दी में डरके मारे ऐसा हो गया । फिरसे भूल नहीं होगी, ऐसा कहा; और स्वयं संघर्ष में चुस्त रहने का वचन दिया तथा दूसरोंसे भी चुस्त रहनेका अनुरोध किया । श्री अब्दुल गनीने ऐसा किया, इसलिए अब हममें से किसीको उनसे कुछ कहना नहीं है । मैं आशा करता हूँ कि उक्त महोदय अब हमेशा लड़ाई में आगे बढ़कर हिस्सा लेंगे तथा कौमकी सेवा करेंगे ।
श्री अली ईसपर आज मुकदमा चला । उनपर पंजीयन रजिस्ट्रेशन न करानेका आरोप लगाया गया था । इस मुकदमे में श्री पोलक हाजिर थे । श्री अली ईसपको सात दिनमें देश छोड़ने की हिदायत की गई है ।
१. इस दस्तावेजवर १२ व्यक्तियोंने सही की थी और इसके ८ गवाह थे, जिनमें एक गांधीजी भी थे ।
२. देखिए " जोहानिसबर्ग की चिट्ठी ", पृष्ठ १६ ।