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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

नियमोंमें नहीं है । यदि यह दलील ठीक हो, तो मुकदमा खारिज हो जाना चाहिए । श्री वली मुहम्मद बगसके ऊपर दो सम्मन्स हैं, क्योंकि उनकी दो दुकानें हैं ।

बुधवार, [ सितम्बर १६, १९०८]

प्रिटोरियाके भारतीयोंका मुकदमा मेजर डिक्सनके सामने हुआ । श्री गांधी तथा श्री लिखटेंस्टाइन उपस्थित थे । जिस दलीलका ऊपर जिक्र कर चुका हूँ, वह पेश की गई । मजिस्ट्रेट विचारमें पड़ गये, किन्तु उन्होंने निर्णय यही दिया कि नगरपालिकाको पंसारीका परवाना (ग्रोसर्स लाइसेंस) माँगनेका हक है । पहले श्री इस्माइल जुमाका मुकदमा हुआ । चूँकि उपर्युक्त दलील पेश की जा चुकी थी, इसलिए मजिस्ट्रेटका मन नरम पड़ गया । नगरपालिकाका वकील भी बहुत जोरदार नहीं था, इसलिए भारतीयोंकी ओरसे गवाही नहीं दी गई । परिणामतः न्यायाधीशने पाँच शिलिंग जुर्माना अथवा तीन दिनकी सख्त कैदकी सजा दी । श्री इस्माइल जुमा तुरन्त ही इसे स्वीकर करके जेल चले गये । उसके बाद श्री वली मुहम्मदके दो मुकदमे हुए । उनका भी यही नतीजा हुआ । तत्पश्चात् श्री आडियाकी बारी आई और उसके बाद लालशाह वल्लभदास उर्फ श्री मंगलदास पटेलकी बारी आई । सभीको यही सजा दी गई और सभी हँसते-हँसते जेल चले गये । सच कहें तो उन्हें केवल एक ही दिनकी जेल हुई। मंगलवारको चार बजे गये थे । वह तो कुछ भी नहीं रहा। बुधवार पूरा दिन जेलमें रहकर गुरुवारको सुबह बाहर आ जाना है ।

यद्यपि उक्त सज्जनोंको जेलकी सजा हो गई है, फिर भी जो दलील दी गई थी, उसके विषय में अपील करने की बात चल रही है; क्योंकि उसमें से कुछ फायदा निकलनेकी सम्भावना है। यदि पंसारीका परवाना लेना निश्चित ही हो, तो इस प्रकार कुछ समय तक लोग उस परवानेसे मुक्त रह सकते हैं । यदि ऐसा हो सका तो दो काम निकलेंगे । हम जेल भी जा सकेंगे और फिलहाल कानूनका दिया हुआ एक बहाना हमारे हाथ आ जायेगा । श्री वली मुहम्मद प्रिटोरियामें अध्यक्ष हैं । इसलिए यद्यपि उन्हें नाममात्रको ही जेलकी सजा मिली है, फिर भी यह साधारण बात नहीं है कि अध्यक्ष जेल भेजे गये। मैं श्री वली मुहम्मद और उसी प्रकार प्रिटोरियाके अन्य भाइयोंको भी मुबारकबादी देता हूँ ।

पाठकोंको याद होगा कि श्री इस्माइल जुमा अबतक दो बार जेल जा चुके हैं । यह तो अभी-अभीकी बात है कि श्री आडियाको एक पौंडका जुर्माना हुआ था और उनका माल नीलाम किया गया था ।

दुःखकी बात यह है कि उक्त सज्जनगण तो जेल गये, किन्तु सम्मन्स निकलते ही कुछ अन्य भारतीय डर गये । उन्हें मालकी नीलामीका डर हुआ, इसलिए उन्होंने अँगूठेकी निशानी देकर तत्काल परवाने ले लिये । कहा जाता है कि ऐसे २० लोग हैं । ऐसी घटनाओंसे ही संघर्ष लम्बा होता जाता है । यदि सभी भारतीय हिम्मत रखें, तो हम थोड़े ही दिनों में नेटालके व्यापारियोंको छुड़वा सकते हैं। फिर, प्रिटोरियामें व्यापारियोंके सम्मानके लिए जब दूकानें बन्द करने की बात चली, तब बहुतोंने दूकानें बन्द नहीं कीं । यह भी खराब बात है; इसे स्वार्थयुक्त दृष्टि ही कहा जायेगा । जब भारतीय कौमके स्तम्भ कहे जानेवाले लोग जेल

१. समन्स फिन लोगोंके नाम निकाले गये थे, यह बात मूलमें स्पष्ट नहीं है ।