पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]

सितम्बर १७, १९०८

जेल-निदेशक
प्रिटोरिया
महोदय,

आपका इस महीनेकी १६ तारीखका कृपा-पत्र, संख्या ६६७, मिला । मेरे संघको इस बातका अत्यन्त खेद है कि उसने जो मुद्दा उठाया है वह अभीतक गलत समझा जा रहा है ।

मेरा संघ यह जानता है और स्वीकार करता है कि स्वास्थ्यकी दृष्टिसे मक्कीका दलिया पूर्णतः पौष्टिक आहार है; किन्तु मेरे संघने तो यह मुद्दा उठाया है कि आहार निर्धन वर्गके भारतीयों तक की आदतोंके अनुकूल नहीं है । मक्कीका दलिया भारतीयोंका राष्ट्रीय भोजन नहीं है । निःसन्देह आपको विदित है कि यद्यपि वह स्वास्थ्यकी दृष्टिसे उपयुक्त है तथापि कैदियों को उसके साथ हमेशा रोटी भी दी जाती है । रोटी निश्चय ही स्वास्थ्यकी दृष्टिसे यूरोपीयोंके लिए भारतीयोंकी अपेक्षा ज्यादा जरूरी नहीं है । आप यह भी जानते हैं कि वतनी कैदियोंको मक्की दोपहर के भोजन में दी जाती है । यह भी स्वास्थ्यकी दृष्टिसे उपयुक्त है; फिर भी समितिने, जो जानकारी उसके पास अवश्य रही होगी उसके आधारपर, भारतीय बन्दियोंके दोपहरके भोजन में मक्की स्थानपर चावल रखा । भोजन-तालिका बनानेवाली समितिने जिस कारण से प्रेरित होकर भारतीय बन्दियोंके लिए दोपहर के भोजनमें मक्कीके स्थानपर चावल निर्धारित किया, मेरा संघ उसी कारण से नाश्ते में मक्कीके दलियाके स्थानपर अन्य आहारकी माँग करता है ।

यदि भारतीय बन्दियोंकी भोजन तालिकाके खिलाफ अबतक शिकायत नहीं की गई, तो इसका कारण यह है कि यहां भारतीय बन्दी बहुत कम रहे हैं । किन्तु इस समय शिकायत करना केवल इसलिए ही उचित नहीं है कि ट्रान्सवालकी जेलें भारतीयोंसे भरी हुई हैं, बल्कि इसलिए भी उचित है कि वस्तुतः ये भारतीय अपराधी नहीं हैं और मेरे संघके विचारमें दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजकी उच्चतम श्रेणीके लोग हैं ।

यदि मेरे संघके बार-बार किये गये निवेदनोंपर ध्यान नहीं दिया गया है तो इससे भारतीय समाज केवल यही निष्कर्ष निकाल सकता है कि मेरे संघकी उचित प्रार्थना राजनीतिक कारणोंसे ठुकराई जाती है, और इसका उद्देश्य भारतीय समाजको भूखा रखकर एक ऐसा कानून स्वीकार करनेके लिए मजबूर करना है जो उसे नापसन्द है ।

१. जेल-निदेशक : डायरेक्टर ऑफ प्रिजन्स । यह तथा १८ और २५ सितम्बरको जेल-निदेशकको लिखे दो अन्य पत्र, २१ और २८ सितम्बरको उपनिवेश सचिवके नाम लिखे दो पत्रोंके साथ, इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित किये गये थे । शीर्षक था, “क्या भारतीय भूखों मारकर झुकाये जायेंगे ? जेलकी भोजन तालिकाको फिरसे चर्चा " । ९-४