अब्दुल्ला ब्राउन' नामक एक आयरिशकी परीक्षा ली गई थी, क्योंकि वह तुर्की टोपी पहने हुए था; परन्तु उसके अन्य गोरे साथी बिल्कुल छोड़ दिये गये थे । बादमें स्वर्गीय श्री एस्कम्ब और श्री ब्राउन इस बातपर खूब हँसे । श्री ब्राउनको इस हास्यास्पद स्थितिका एहसास तो हुआ; किन्तु उन्होंने यह खयाल नहीं किया कि परीक्षा में कुछ बेईमानी है ।
आज यही केपमें हो रहा है ।
तथ्य यह है कि कानूनी असमानता एक सम्पूर्ण प्रजातिके लिए अपमानजनक होगी । प्रशासनिक भेदभावका मतलब होगा पूर्वग्रहको तरह देना और भारतीयों द्वारा उसकी स्वीकृतिका अर्थ होगा इस प्रकारके पूर्वग्रहको उदारतापूर्वक और मैं तो कहता हूँ, राजनयिकोचित मान्यता देना कहलायेगा । साथ ही इसका अर्थ इस तथ्यको मान लेना भी होगा कि यदि हम इस देशमें रहना चाहते हैं तो हमें यूरोपीय प्रजातियोंकी प्रधानताके सामने सिर झुकाना पड़ेगा ।
कुछ भी हो, यदि आप इस बात से सहमत हैं कि मुट्ठी-भर सुशिक्षित एशियाइयोंको बिना अपमानित किये सुरक्षित रूपसे आने दिया जाये तो, निश्चय ही, सरकार और प्रगतिवादी दलकी सम्मिलित बुद्धिसे कोई ऐसा हल निकले बिना नहीं रह सकता, जो यूरोपीयों और भारतीयों, दोनोंको मान्य हो और जिससे एक ऐसी स्थिति समाप्त हो जाये जिसे साम्राज्यका कोई भी शुभेच्छु उदासीन भावसे नहीं देख सकता ।
आपका, आदि,
क० गांधी
२६. ईसप मियाँ और उनके उत्तराधिकारी
ब्रिटिश भारतीय संघ के अध्यक्ष-पदसे श्री ईसप मियाँके त्यागपत्र दे देनेके कारण जोहानिसबर्ग में हुई १० तारीखको सार्वजनिक सभा उल्लेखनीय थी । बड़े ही कठिन अवसरपर श्री ईस मियाने संघकी पतवार अपने हाथमें ली थी । किसी कमजोर व्यक्तिके अध्यक्ष होनेसे भारतीय समाजपर महान संकट और सर्वनाश आ सकता था । श्री ईसप मियाँ शक्तिशाली और दृढ़ सिद्ध हुए । स्थानीय सरकार जिन शैतानी ताकतोंकी प्रतिनिधि है, उनसे लड़ने के लिए उन्होंने पिछले वर्ष अपना कारोबार लगभग बन्द कर दिया । उन्होंने अपनी हजकी यात्रा तीसरी बार मुल्तवी की। उनकी पत्नीकी मृत्यु हो गई; किन्तु उन्होंने पतवार हाथ से नहीं छोड़ी । सारा संसार जानता है कि उन्होंने सचाईकी खातिर अपने ही देशवासीके हाथों गहरी शारीरिक क्षति उठाई । पिछले जनवरी माह के समझौते से और नये पंजीयन
१. अगस्त १९०४ में तीसरी बार डर्बनके मुख्य नगर न्यायाधीश और महापौर निर्वाचित; देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २५७-५८; उस बाजार-नोटिसके जन्मदाता जिसमें नेटालमें एशियाइयोंका व्यापार केवल बस्तियों तक सीमित कर देनेका प्रस्ताव था ।
२. देखिए " प्रस्ताव : सार्वजनिक सभामें " पृष्ठ ३२ ।
३. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २४३-४५ और २४९ ।