पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जुर्मानेकी अथवा सात दिनकी सख्त कँदकी सजा दी । मैंने कैदको सजा मंजूर की । मैं जब जेलमें दाखिल हुआ तब एक काफिर मेरे पास आया और उसने मुझसे कपड़े उतारकर नंगा हो जानेके लिए कहा । मैंने वैसा ही किया । उसके बाद मुझे उसी अवस्थामें कुछ दूर नंगे पैर चलाया गया और काफिरोंके साथ २५ मिनट तक ठंडे पानीमें खड़ा रखा गया । फिर मुझे बाहर निकाला गया और एक दफ्तरमें ले जाया गया। उसके बाद मुझे पहनने के लिए कुछ कपड़े तो दिये गये किन्तु चप्पलें नहीं दी गईं । इसलिए मैंने जेलरसे चप्पलोंकी माँग की । पहले तो उसने इनकार कर दिया, पर बादमें मुझे फटी हुई चप्पलें दे दी गईं। मैंने मोजे माँगे तो उसने मुझे गालियाँ दीं ( जो अनुवाद योग्य नहीं हैं ) । मैंने अपनी माँग फिर दुहराई तो उसने कहा, "देखो, मैं तुम्हें कोड़े लगाऊँगा । तब मैं डर गया और यदि मैं दुबारा बोलता तो उसने मुझे जरूर पीटा होता ।

अगस्त २० को मुझे पाखानेकी बाल्टियां ले जाने और खाली करनेका काम दिया गया । मैंने जेलरसे इस कामके बारेमें शिकायत की तो मुझे ठोकरें और तमाचे मिले । फिर भी मैंने अपनी शिकायत जारी रखी और कहा कि पत्थर तोड़नेका काम खुशीसे करूँगा, लेकिन मुझे इन बाल्टियोंको ले जाने और खाली करनेके काम से मुक्त कर दिया जाये । मुझे फिर ठोकरें मारी गईं । मैं लाचार हो गया और मुझे वे बाल्टियाँ ले जानी पड़ीं ।

शनिवार, २२ अगस्तको मुझे फिर करीब आधे घंटे तक ठंडे पानीमें रखा गया । पानी बेहद ठंडा था । मैं काँप रहा था । ईश्वर ही जानता है, कितना ठंडा था वह । इसके बाद मुझे कुछ ज्वर हो आया । मेरे सीने में दर्द होने लगा । २५ तारीखको मुझे रिहा कर दिया गया । रिहा करते वक्त जेलरने मुझसे कहा, "यदि तुम मरना चाहो तो फिर आ सकते हो ।" मैंने तुरन्त जवाब दिया, "अच्छी बात है, यदि तुम मार सको तो मार डालना ।" इसके बाद मैं ११ बजेकी गाड़ीसे स्प्रिंग्ज़ लौट आया । और तभी से मैं बीमार हूँ, मेरी छाती से खून आता है और मैं डॉक्टरकी सलाहके अनुसार चल रहा हूँ ।...

मेरे साथ काफिर कैदियोंसे भी ज्यादा बुरा व्यवहार किया गया । सौभाग्य से मैं एक ही हिन्दुस्तानी था । ईश्वरको धन्यवाद है कि मैं बच गया । लोगोंपर मेरा जो भी पैसा निकलता था, वह सब डूब गया है; लेकिन मैं उसकी परवाह नहीं करता । मैं आशा करता हूँ कि समाज अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा कर सकेगा ।

मेरा संघ नहीं जानता कि ऊपर दिया गया विवरण कहाँतक सही है; लेकिन मेरी नम्र रायमें, देखनेसे तो यही लगता है कि घटनाकी पूरी जाँच वांछनीय है और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आप जाँच करायेंगे ही । इस बीच मैं आपके द्वारा सरकारको यह सूचित कर देनेकी धृष्टता करता हूँ कि उपर्युक्त विवरणको सच मानकर मेरे संघने यही सलाह दी है कि जिसे संघ नैतिक सिद्धान्त मानता है उसकी रक्षाके लिए सारी कठिनाइयोंके बावजूद कष्ट सहना जारी रखा जाये ।

मैं इतना और कह दूँ कि उक्त पत्रका लेखक, जैसा कि उसके नाम से प्रकट है, पैगम्बरका सोधा वंशज है और जब मुसलमानोंको यह मालूम होगा कि बॉक्सबर्ग जेल में ऐसे