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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केवल उक्त संख्या में ही प्रवेश मिल सके तो भी हमें कोई आपत्ति न होगी । इस प्रकारके अमलके लिए पूर्वोदाहरणका अभाव नहीं है । केप और नेटालमें आजकल ऐसा ही किया जा रहा है। हमारे विचारमें प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम ( इमिग्रेशन रिस्ट्रिक्शन ऐक्ट ) के अन्तर्गत इस प्रकारका विवेकाधिकार दिया गया है । किन्तु यदि जनरल स्मट्सका खयाल दूसरा हो तो हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि कानूनमें इस प्रकारका संशोधन कर दिया जाये जिससे उन्हें अधिक से- अधिक विवेकाधिकार मिल जाये ।

ये दो मुख्य प्रश्न शेष हैं । वास्तवमें ये दोनों प्रश्न एक भी हैं, क्योंकि यदि १९०७ का कानून २ रद कर दिया गया तो प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम उपनिवेशमें प्रवेश करनेवाले उच्च शिक्षा-प्राप्त भारतीयोंके मार्ग में बाधक न होगा । हम इस प्रश्नको इसलिए अलग रखते हैं कि हम यह प्रकट करना चाहते हैं कि प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत उपलब्ध सुविधाओंसे अनुचित लाभ उठानेकी हमारी कोई इच्छा नहीं है, बल्कि हमने निहायत नेकनीयती से यह घोषणा की है कि हम उपनिवेश में एशियाइयोंका अनियन्त्रित प्रवास नहीं चाहते । हम केवल इतना ही कहते हैं कि यदि अधिवासी एशियाइयों (रेजिडेंट एशियाटिक्स) के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना है और यदि सम्पूर्ण एशियाई राष्ट्रको अपमानित नहीं करना है, तो शिक्षित एशियाइयोंके साथ सामान्य प्रवासी कानूनके अन्तर्गत व्यवहार किया जाये और उन्हें किसी पंजीयन अधिनियम (रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) के नियन्त्रण में आनेके लिए विवश न किया जाये ।

दूसरे प्रश्न, अर्थात् उन लोगोंको पुनः पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) प्रदान करना जिन्होंने उन्हें जला दिया है तथा श्री सोराबजीको बहाल करना, हमारे मतमें, प्रशासन-सम्बन्धी छोटी बातें हैं, जो मुख्य मुद्देके हल हो जानेपर आसानीसे तय की जा सकती हैं ।

हम यह जिक्र कर दें कि जहाँ नया कानून', जिसपर हाल ही में सम्राट्की स्वीकृति मिली है, बहुत मुनासिन है, वहाँ उसमें एक या दो खामियाँ भी हैं। उदाहरणार्थ, उन लोगोंको, जो पहलेसे उपनिवेशमें हैं और जो वैध रूप से उपनिवेशमें प्रविष्ट हुए हैं, अपने दावोंके सम्बन्ध में ३ वर्षके अधिवासका प्रमाणपत्र पेश करनेके लिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कुछ ऐसे लोगोंको भी पंजीयन प्रमाणपत्र उपलब्ध हो चुके हैं, जिन्होंने ऐसे सबूत नहीं दिये हैं। यह भी महसूस किया जाता है कि यदि परवानों (लाइसेंस) के प्रार्थनापत्रोंपर अँगूठेका निशान लगानेके सम्बन्ध में अधिक से -अधिक उदारता नहीं बरती जाती तो उस विशिष्ट खण्ड से अत्यधिक विक्षोभ उत्पन्न होगा ।

हम समझते हैं कि जिस समझौतेकी बात चल रही है उसका परिणाम यदि शुभ निकला तो समझौता होने के साथ-साथ ही वे लोग छोड़ दिये जायेंगे जो इस समय जेलकी सजा काट रहे हैं।

१. एशियाई वैधीकरण पंजीयन कानून, १९०८ (एशियाटिक्स वैलिडेशन रजिस्ट्रेशन ऐक्ट, १९०८) । ट्रान्सवाल संसद में इस कानूनके विधेयकपर बहसमें भाग लेते हुए श्री हॉस्केनने कहा था कि यद्यपि मेरे खयालसे "विधेयक में उठाये गये सब मुद्दोंकी व्यवस्था है" और मुझे आशा है कि भारतीय लोग इसे स्वीकार कर लेंगे, फिर भी मेरा मतभेद एक बात -- शैक्षणिक कसौटी - पर है । मेरे खयाल से " धर्म-गुरुओं या अन्य योग्य व्यक्तियोंको निवासके अनुमतिपत्र न देना " इस विधेयककी ऐसी संकीर्ण व्याख्या करना है कि मैं इससे सहमत नहीं हो सकता । बादमें जिन सदस्योंने श्री स्मट्सके एशियाई पंजीयन संशोधन विधेयक (एशियाटिक्स रजिस्ट्रेशन एमेंडमेंड बिल) का समर्थन किया उनमें श्री हॉस्केन भी थे ।