३१. पत्र : उपनिवेश-सचिवको
[ जोहानिसबर्ग ]
सितम्बर २१, १९०८
मैं आपकी सेवामें इस पत्रके साथ जेल-निदेशक (डायरेक्टर ऑफ प्रिज़न्स) को भेजे गये अपने पत्र और उनके उत्तरकी नकलें भेज रहा हूँ । यदि आप कृपया निदेशकको प्रेषित पत्र में की गई प्रार्थना स्वीकार कर लेंगे तो मेरा संघ अनुगृहीत होगा ।
आपका,आदि,
अ० मु० काछलिया
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ
३२. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
यह साबित होता जा रहा है कि कष्टोंका प्याला हमें पूराका-पूरा पीना पड़ेगा । श्री सैयद अली बॉक्सबर्ग से सात दिनकी सजा भोगकर आये हैं । वहाँ उन्हें असीम कष्ट था । उनको सख्त कैदकी सजा दी गई थी। उनसे टट्टीकी बाल्टियाँ उठवाई गईं, उन्हें बहुत देर तक ठंडे पानी में रखा गया, ठोकरें मारी गईं । यह कष्ट कैसे सहा जा सकता है ? श्री काछलियाने उनके बारेमें जेल-निदेशकको पत्र लिखा है । समय आनेपर सुनवाई होगी । किन्तु सुनवाई हो अथवा न हो, हम बाल्टियाँ भी उठायेंगे और ठोकरें भी खायेंगे, इसीमें हम अपना गौरव मानेंगे । जब हमें बाल्टियाँ उठाते हुए प्रसन्नता होगी, तभी हमारे बन्धन टूटेंगे, तभी माना जायेगा कि हमने सत्याग्रहको समझ लिया है । सत्याग्रहका अर्थ है, जिसे हम सत्य समझते हैं उसे मरणपर्यन्त न छोड़ना, सत्यके लिए चाहे जितनी तकलीफें उठानी पड़ें, सब उठाना । कष्ट किसीको नहीं पहुँचाना चाहिए, क्योंकि कष्ट पहुँचानेसे सत्यका उल्लंघन होता है । इतना
१. देखिए " पत्र : जेल-निदेशकको”, पृष्ठ ४९-५० ।
२. गांधीजीने यह खरीता २० सितम्बरको लिखना शुरू किया और २३ सितम्बरको समाप्त किया ।
३. देखिए “पत्र : जेल-निदेशकको”, पृष्ठ ४९-५० ।