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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
उलझन

'ट्रान्सवाल लीडर' में प्रकाशित हुआ है कि यदि प्रतिवर्ष केवल ६ शिक्षित भारतीय आ सकें, तो भारतीय तुष्ट हो जायेंगे ।" इसपर बहुत पूछताछ की जा रही है । कोई कहता है कि संघर्ष [ प्रतिवर्ष ] केवल छ: भारतीयोंके प्रवेशके लिए किया जा रहा है; कोई कहता है कि यह तो बिल्कुल नई बात है । किन्तु यह गलतफहमी है । हमारी माँग यह है कि कमसे कम कानूनमें तो सभी शिक्षित लोगोंको एक-सा हक हासिल होना चाहिए । हम कह चुके हैं कि [ सब प्रवासियोंके लिए ] कानून एक ही हो, भले ही [ अधिकारियोंकी इच्छानुसार ] परीक्षा इतनी कठिन ली जाये कि एक भी भारतीय न आ सके। कहनेका अर्थ यह हुआ कि कानूनके मुताबिक शिक्षितोंकी जो परीक्षा ली जायेगी, उसमें यदि वे उत्तीर्ण हो जायेंगे तो प्रविष्ट हो सकेंगे । फिर गोरोंकी सरल परीक्षा लें अथवा एकदम लें ही नहीं और भारतीयोंकी कठिन परीक्षा लें -- उसका विरोध नहीं किया जा सकता । यदि ऐसा हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी । तब सवाल उठता है कि इसमें फायदा क्या है ? इसके उत्तरमें हम कह सकते हैं कि यदि एक सीमित संख्या में भारतीयोंके प्रवेशकी अनुमति हो, तो भी कानूनमें प्रतिबन्धका कलंक हमारे लिए शोभनीय नहीं है । किन्तु, यदि हमने इसी ढंग से सोचा तब तो सम्भव है, एक भी भारतीय न आ पाये, इसके बदले छःका आना तो निश्चित हो हो जाता है । हमारा संघर्ष कानूनके अनुसार दरवाजा बन्द किया जानेके विरुद्ध है । यदि दरवाजा कानूनके अनुसार बन्द हो गया तब तो उसे खोलना मुश्किल होगा । किन्तु, यदि अधिकारी [एशियाइयोंको ] मात्र परीक्षा में अनुत्तीर्ण करके दरवाजा बन्द रखें तो उसका उपाय किया जा सकता है। नेटाल और केपमें कानून ऐसा ही है । वहाँ गोरोंकी परीक्षा नहीं ली जाती, किन्तु भारतीयोंकी परीक्षा प्रतिवर्ष कठिन होती जाती है। आस्ट्रे- लियामें ऐसा कानून अब भी हैं, फिर भी वहाँ सैकड़ों गोरे प्रविष्ट होते हैं । किन्तु भारतीयोंकी परीक्षा इतनी कठिन ली जाती है कि वहाँ अबतक एक भी भारतीय प्रवेश नहीं पा सका है। किन्तु जब आस्ट्रेलियाके लोगोंका भ्रम मिट जायेगा अथवा अधिकारी अच्छे होंगे तब वे भारतीयों को उचित परीक्षा लेकर प्रविष्ट होने देंगे । इसलिए जो छः भारतीयोंके प्रवेशकी बात कही गई हैं, वह उपनिवेशके लोगोंको संतोष देने और भारतीय समाजके रुखका औचित्य बतानेके लिए कही गई है। कानून एक, पर उसका प्रशासन अलग-अलग --यह हुआ उपर्युक्त माँगका अर्थ । इस प्रकार इस माँगमें और जो माँग सार्वजनिक सभा में की गई थी तथा जिसे श्री स्मट्सने अल्टिमेटम' [ अन्तिम चेतावनी] कहा था, उसमें कोई अन्तर नहीं है ।

१. सितम्बर १२ के ट्रान्सवाल वीकली इलस्ट्रेटेडमें प्रकाशित हुआ था कि"...श्री गांधी ने कहा है । यदि सरकार प्रतिवर्ष छ : शिक्षित भारतीयोंको -- अधिककी नही -- प्रवेश करनी की अनुमति दे देगी तो, जहाँतक मामलेके इस हिस्सेका सम्बन्ध है, स्वयं वे और उनका समाज सन्तोष करनेके लिए वचनबद्ध हो जायेंगे ।...यदि प्रतिवर्षं पूरे छः-छः व्यक्ति भी आ जायें, तो भी उस भयानक आक्रमणसे ट्रान्सवाल बर्बाद हो जायेगा, इसमें हमें सन्देह है । एशियाई लोगों के प्रवासके सम्बन्धमें हदबन्दीके इस सिद्धान्तको साम्राज्यके प्रायः सभी सदस्य मानते हैं । " देखिए " पत्र : हॉस्केनको ", पृष्ठ ५९-६१ भी ।

२. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५६-५९ ।