रोहाड़ ठंड में होने वाली छुटपुट वर्षा है। वरखावल भी झड़ी के अर्थ में वर्षावलि से सुधरकर बोली में आया शब्द है। मेहांझड़ में बूंदों की गति भी बढ़ती है और अवधि भी। झपटो में केवल गति बढ़ती है और अवधि कम हो जाती है-एक झपट्टे में सारा पानी गिर जाता है।
त्राट, त्रमझड़, त्राटकणो और धरहरणो शब्द मूसलाधार वर्षा के लिए हैं। छोल शब्द भी इसी तरह की वर्षा के साथ-साथ आनंद का अर्थ भी समेटता है। यह छोल, यह आनंद सन्नाटे का नहीं है। ऐसी तेज़ वर्षा के साथ बहने वाली आवाज़ सोक या सोकड़ कहलाती है। वर्षा कभी-कभी इतनी तेज़ और सोकड़ इतनी चंचल हो जाती है कि बादल और धरती की लंबी दूरी क्षण भर में नप जाती है। तब बादल से धरती तक को स्पर्श करने वाली धारावली यहां धारोलो के नाम से जानी जाती है।
न तो वर्षा का खेल यहां आकर रुकता है, न शब्दों का ही। धारोलो की बौछार बाहर से घर के भीतर आने लगे तो बाछड़ कहलाती है और इस बाछड़ की नमी से नम्र, नरम हुए और भीगे कपड़ों का विशेषण बाछड़वायो बन जाता है। धारोलो के साथ उठने वाली आवाज़ घमक कहलाती है। यह वज़नी है, पुल्लिंग भी। घमक को लेकर बहने वाली प्रचंड वायु वाबल है।
धीरे-धीरे वाबल मंद पड़ती है, घमक शांत होता है, कुछ ही देर पहले धरती को स्पर्श कर रहा धारोलो वापस बादल तक लौटने लगता है। वर्षा थम जाती है। बादल अभी छंटे नहीं हैं। अस्त हो रहा सूर्य उनमें से झांक रहा है। झांकते सूर्य की लंबी किरण मोघ कहलाती है और यह भी वर्षासूचक मानी जाती है। मोघ दर्शन के बाद रात फिर वर्षा होगी। जिस रात खूब पानी गिरे, वह मामूली रैण नहीं, महारैण कहलाती है।
तूठणो क्रिया है बरसने की और उबरेलो है उसके सिमटने की। तब चौमासा उठ जाता है, बीत जाता है। बरसने से सिमटने तक हर गांव, हर
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