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अनुपम मिश्र

मैं सर विलियम वेलॉक नामक अंग्रेज़ अधिकारी को याद करना चाहूंगा। 1938 में बंगाल प्रेसीडेंसी के इंजीनियरों के सामने उन्होंने छह भाषण दिए। वेलॉक ने अपने सभी युवा अधिकारियों के सामने कहा था कि 70-80 साल में अंग्रेज़ों ने जो नहरें बनाई हैं, उनका आर्थिक लाभ एक पलड़े में रखो और नुकसान दूसरे पर, तो नुकसान का पलड़ा कहीं ज़्यादा भारी है। हमने पूरे बंगाल की सोनार-संस्कृति को नष्ट किया है। वेलॉक ने कहा था कि उत्पादन घटा है नहरों के आने के बाद।

मध्यप्रदेश में तवा बांध को लेकर यही हुआ। 73-74 के समय विवाद के कारण नर्मदा पर बांध नहीं बन सकते थे तो तवा पर बांध बनाया गया। इस बांध के कारण खेतों में दलदल हो गया। खेती बर्बाद हो गई। काली मिट्टी वाले इलाके में, जहां अनाज भारी मात्रा में होता था, तबाही मच गई। जर्मन विकास बैंक ने इस तबाही के कारण बदनामी को देखते हुए तवा बांध पर लगाए गए पैसे वसूलने की भी ज़रूरत नहीं समझी और चुपचाप खाता बंद कर दिया और दृश्य से ही गायब हो गया। उस समय अकेले गांधीवादी बनवारीलाल चौधरी ने तवा बांध का विरोध किया। फिर बांध के कारण आई विपदा से मुक्ति के लिए मिट्टी बचाओ आंदोलन शुरू किया। ऐसा ही अभियान अब नदियों की रक्षा के लिए चलाना होगा।

वेलॉक ने अस्सी-नब्बे साल पहले कहा था कि नदियों के प्रवाह कम होने से उत्पादन घटा है। बाढ़ की संभावना बढ़ी है। खारापन, लवणीकरण इस इलाके में बढ़ा है। उन्होंने एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताया था कि मलेरिया का प्रकोप इस इलाके में केवल नदियों को छेड़ने के बाद आया है। नदी जोड़ो योजना से पूरे डेल्टा के इलाके में यह सब कुछ और बढ़ेगा। आजादी से थोड़ा पहले बंगाल के सिंचाई विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने प्रो. मजूमदार का एक भाषण भी महत्वपूर्ण है। मजूमदार ने कहा था कि यह मानने की गलती या बेवकूफी न करो कि

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