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राजरोगियों की खतरनाक रज़ामंदी


नदी का पानी समुद्र में 'बर्बाद' जाता है। समुद्र में जाकर ये नदियां हम पर उपकार करती हैं, इसलिए इनको देवी माना गया है।'

राज-रोग से कैसे निपटें? इससे निपटने का एक ही तरीका होता है। जब राज हाथ से जाता है तो यह रोग भी चला जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण रामकृष्ण हेगड़े का है। कर्नाटक में पच्चीस साल पहले वेड़थी नदी पर एक बांध बनाया जा रहा था। किसानों को इस बांध के बनने से उनकी खेती के चक्र के नष्ट होने की आशंका हुई। उन्होंने इसका विरोध किया। कर्नाटक के किसानों ने संगठन बनाकर सरकार से कहा कि उन्हें इस बांध की ज़रूरत ही नहीं है। संपन्नतम खेती वे बिना बांध के ही कर रहे हैं। इस बांध के बनने से उनका सारा चक्र नष्ट हो जाएगा। हेगड़े उस आंदोलन के अगुवा बने। पांच साल तक वे इस आंदोलन के एकछत्र नेता रहे। बाद में राज्य के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद हेगड़े वेड़थी बांध बनाने के पक्ष में हो गए। लोगों ने कहा कि आप तो इस बांध के प्रमुख विरोधियों में से थे। उन्होंने कहा तब मैं सरकार में नहीं था। अभी मुझे पूरे कर्नाटक की ज़रूरत दिखाई देती है। क्षेत्र विशेष में अब मेरी दिलचस्पी नहीं है। उससे उसको नुकसान भी होगा तो भोगने दो। लेकिन कर्नाटक को इतनी बिजली मिलेगी जितनी ज़रूरत है। औद्योगिकरण होगा। हेगड़े के पाला बदलने के बावजूद किसानों का आंदोलन चलता रहा। हेगड़े का राज चला गया। उनका राज-रोग भी चला गया। लेकिन किसानों का आंदोलन चलता रहा। आंदोलन के कारण ही वह बांध आज भी नहीं बन सका। देश में इस तरह का यह पहला उदाहरण है।

जिनका दिल देश के लिए धड़कता है उन्हें नदी जोड़ो परियोजना पर प्रेमपूर्वक बात करनी चाहिए। ज़रूर कहीं कोई-न-कोई सुनेगा। यह दौर बहुत विचित्र है और इस दौर में सब विचारधाराएं और हर तरह का

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