अपने सभी समाजों में श्रद्धा रखने का बड़ा उदाहरण यह घराट है। अब अंग्रेज़ी में जिसे ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी कहा जाता है उसे यह छोटी-सी घराट निरर्थक शब्द बना देती है। जो उपयोगी तकनीक है उसका ट्रांसफ़र समाज में हो ही चुका होगा।
अगर हमारी कोई समस्या ऐसी नहीं आई जो हमारे समाज की ताकत से हल नहीं हो सकती है और वैसी समस्या पहले कहीं आ गई है, उसके हल की दिशा में कुछ प्रयत्न किया गया है, तो उससे सीखने में क्या नुक़सान है। अगर ब्राज़ील से कुछ हमको अच्छा सीखने को मिलता हो और हमारा जंगल थोड़ा भी सुधरता हो तो स्वागत है। लेकिन उसको अपनाने से पहले मेरा ज़ोर है कि अपने समाज को खंगाल कर पूरी तरह से देख लेना चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी चीज़ तो नहीं है जिसकी तरफ़ हमारा ध्यान नहीं गया है। तो मिश्रण होना चाहिए, बाहर का हो, अपने अलग प्रदेशों का हो अच्छी बात है। आदान-प्रदान में कोई दिक्कत नहीं है। इस तरह की संभावनाओं पर लोगों का ध्यान जाना चाहिए, अभी नहीं है। लेकिन होना चाहिए। जैसे अभी एक उदाहरण है कि राजस्थान वाली किताब को पेरिस की किसी संस्था ने देखकर के कहा कि फ्रांसीसी भाषा मरुभूमि में बहुत बोली जाती है। अगर इसमें से कुछ सूडान देश में काम आ सकता है तो इस किताब का उन्होंने अनुवाद किया। इसी तरह से ब्राज़ील ने भारत के गोवंश को अपनाया है। वहां उन नस्लों ने बहुत अच्छे परिणाम दिए। वहां पर यह बहुत सफल प्रयोग रहा। यहां तक कि ब्राज़ील ने कुछ सिक्के भी जारी किए थे इस नस्ल पर। तो आज अगर हम इस तरह की पारस्परिकता को अपनाएं तो एक बेहतर हल निकाला जा सकता है।
बीती अर्धसदी के परिदृश्य में भारतीय राष्ट्र व समाज के पुनराविष्कार के लिए 'स्वयंसेवी संस्थाओं' की भूमिका का विशेष अवदान रहा है
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