व्यक्ति यह जानकारी दे कि आने वाले जमाने में तुम्हें क्या व्यवहार करना है। यह ऐसी व्यवस्था थी।
आज लोगों को लगता है कि हमारा जीवन तो विज्ञान पर, तकनीक पर है। पानी कम है तो और गहरे उतर जाएंगे। सब जगह गुजरात, महाराष्ट्र में यही हुआ। पानी कम गिरा है तो क्या हुआ हमारा तो ट्यूबवैल है। तालाब तो है नहीं। तालाब से सिंचित तो कोई इलाक़ा है नहीं। इसलिए बटन दबाएंगे, पानी निकलेगा। इस तरह दो-तीन दिन तो पानी निकला। उसके बाद नहीं निकला। इसलिए अब अन्य रूपों में भी भोपाओं को देखना चाहिए। उसमें कलेक्टर हो सकते हैं। संस्थाएं हो सकती हैं। अलवर में यह सब काम तरुण भारत संघ से हुआ। ये आधुनिक भोपा बन गए। आज के युग में उन्होंने तो काम पूरा किया।
दोनों बाते हैं। कितना पानी गिर रहा है उसको कम क्षेत्र से जल्दी समेट सकते हैं। अगर वर्षा बहुत अच्छी होती है तो तालाब का आगोर जिसको अब हम जलागम वग़ैरह के नाम से जानते हैं, वह छोटा भी हो सकता है। गोवा कोंकण वग़ैरह के जो इलाके हैं, जहां पानी खूब गिरता है, असम के इलाके हैं जहां तेज़ पानी गिरता है, वहां छोटा आगोर काम देता है। वहां 100,200,300 इंचों से ऊपर गिरता है पर मरुभूमि में 8 इंच पानी गिरेगा इसलिए वहां आगोर बड़ा बनता है कि चारों तरफ़ से एक-एक बूंद आ जाए तब वह भर सकेगा। एकदम से नहीं भरने वाला। एक यह कारण और दूसरा यह कि उपयोग भी इसी आधार पर होंगे। जितनी अच्छी आपके पास वर्षा है, जैसी ज़मीन है उसको रोपने वाली, उसकी क्षमता उसका स्वभाव सब देखा जाता है। उसी आधार पर फ़सलें तय करनी होंगी। आप देखेंगे कि मरुभूमि में इतने सारे तालाब हैं, लेकिन वे सिंचाई के काम आते ही नहीं हैं। सारे तालाब भूजल, पाताल पानी के संवर्धन के लिए, निस्तारी के लिए, नहाने धोने के लिए, पशुओं के लिए
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