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गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया


मारना, उनका पूरा संरक्षण और गोचर में उनके लिए पानी की व्यवस्था और घोंसले और अंडे देने की जगहों को बचाने का भी निर्णय लिया गया। बड़े तालाब अन्नसागर में तालाब के बीच में बने लाखेटा को भी इन्हीं सब कारणों से सुरक्षित रखने का मन बनाया गया। गोचर के पुराने वैभव को याद किया गया। किसी बुजुर्ग ने बताया कि एक समय में इस गोचर में इतने पेड़ थे कि इन पर इस कोने से उस कोने तक गांव के युवक पेड़ों पर चलने की प्रतियोगिता में भाग लेते थे।

घास और उपयोगी पेड़ों से ढके ऐसे गोचर की बात, तब फिर से एक नया सपना बनकर सामने आई। लेकिन इसे पूरा करना तालाब के काम से कहीं ज़्यादा कठिन था।

गोचर को सुधारने का संकल्प था, उसका अनुभव किसी के पास नहीं था। इसलिए बैठकों में तय हुआ कि इस बारे में जहां कहीं से भी कुछ सीखा जा सकता हो, उसे सीखकर लापोड़िया में उतारना चाहिए।

उन दिनों सरकार के ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में गोचर की कहीं कोई जगह नहीं थी। जो ज़मीन सार्वजनिक उपयोग की थी अब यह केवल ऐसी सरकारी ज़मीन मानी जाती थी, जिस पर चाहे जब, चाहे जो कोई क़ब्ज़ा कर ले। गोचर को फिर से ठीक किया जा सकता है-ऐसा अनुभव कहीं था नहीं। फिर भी लापोड़िया के नवयुवक आसपास जानकारी बटोरने के लिए घूमते रहे। कंटूर बंडिंग का एक तरीक़ा उन्हें बताया गया। लापोड़िया के लोग कंटूर बंडिंग का काम देखने गए।

अजमेर के पास तिहरी नामक एक गांव में विश्व बैंक जैसी प्रसिद्ध संस्था की मदद से भारी पैसा बहाकर पांच साल तक एक गोचर को बंद रखा गया और यहां पशुओं को नहीं जाने दिया। गांव में खूब तनाव रहा, लड़ाई दंगे हुए और बाद में तो लोगों ने गोचर की सीमा पर सुरक्षा के

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