जलस्तर बढ़ता जाता है भूकंप की परिस्थितियां बनने लगती थी। उसका पानी छोड़ते जाने से ये संभावनाएं भी कम होने लगती हैं। नर्मदा घाटी में खरगोन के पास सेंधवा में पिछले 137 वर्ष में पांच बार भूकंप आया है। कहा जा सकता है कि बांधों को भूकंप सहने लायक मज़बूत बनाया जा रहा है पर आसपास की बस्तियों का क्या होगा?
बिजली के पीछे जा रहे योजनाकारों को अब यह भी पता चल गया होगा कि नर्मदा घाटी में तेल की भी गुंजाइश है। तेल कम निकलेगा या ज़्यादा, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है। तेल और प्राकृतिक गैस आयोग ने जो कुछ यहां देखा-परखा है उस आधार पर कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र बंबई से ईरान जा रही एक तेल पट्टी की पीठ है। इसे बांधों में डुबोने से पहले यह तो जांच लें कि हम खोने क्या-क्या जा रहे हैं
हम क्या-क्या खो रहे हैं यह जानना ज़रूरी है क्योंकि 21वीं सदी आख़री मंज़िल नहीं है। वह एक पड़ाव भर होगी। 22वीं सदी भी आएगी, 23 भी और उसके आगे भी सूरज उगेगा और डूबेगा। तब भी मालवा, निमाड़, मध्यप्रदेश, गुजरात और देश को विकास करना होगा। इसलिए मेहरबानी करके विकास के (अगर यह सचमुच विकास है तो) सारे माध्यमों पर इन्हीं 15-20 सालों में क़ब्ज़ा मत कीजिए। नर्मदा पर बांधों की कुछ दर्जन भर जगहें अगली पीढ़ी के लिए भी सुरक्षित छोड़ दें। ऐसी क्या हाय तौबा है कि 80 बड़े 300 मंझोले और 3000 छोटे बांध बना लेने की सारी ज़िम्मेदारी इसी पीढ़ी के नाजुक कंधों पर आ गई है? सारा जंगल यही पीढ़ी काट ले, डुबो दे, भूमि का सारा उपजाऊपन यही पीढ़ी खींच ले!
पिछली पीढ़ियां इस पीढ़ी के लिए यह सब छोड़ती आई हैं। ऐसा नहीं था कि ये इनमें से ज़्यादातर काम कर ही नहीं सकती थी इसलिए उन्होंने
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