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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/८९

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अनुपम मिश्र


में जो मकान बनते हैं, उन्हें बनाने वाले अपने क्षेत्र-विशेष का स्वभाव ही नहीं जानते और (दो) देश के किसी और हिस्से में, कोने में या केंद्र में यानी दिल्ली में कुछ ऐसे जानकर लोग हैं जिनके पास यह दुर्लभ ज्ञान या यह रहस्यमय तकनीक उपलब्ध है। कितने आश्चर्य की बात है कि अगर ऐसी कोई तकनीक सचमुच उपलब्ध है, सुलभ है तो वह अब तक वहीं क्यों नहीं पहुंची, जहां उसे खड़े मिलना था, ताकि वह इस भूकंप के बाद भी वहां खड़ी नज़र आती।

तो कहां खोजें ऐसे लोगों को जो इस तकनीक को जानते हैं? पहले दुनिया का चक्कर लगा लें? नाहक यहां-वहां भटकने के बदले दुनिया में नंबर एक और नंबर दो माने गए देशों को टटोलें। अमेरिका के एक बड़े शहर में (देहात में नहीं) कुछ समय पहले भूकंप आया था। भूकंप जिसे हिलाना चाहता था उसे हिला गया जिसमें दरार डालना चाहता था, उसमें दरार डाल गया और जिसे डिगाना चाहता था, उसे डिगा गया। डिगने वाली सूची में विश्व भर में प्रसिद्ध एक मज़बूत पुल भी था। अब नंबर दो को देखें। गोर्बाचेव अपनी लोकप्रियता की ऊंचाई पर थे कि एक भूकंप ने वहां हज़ारों मकान पटक दिए। ये मकान कोई अनघड़ पत्थरों के नहीं थे, एक सशक्त विचारधारा की सीमेंट भी इनकी नींव में मिलाई गई थी। खुलेपन का दौर था तो जांच भी बिठा दी गई। प्रारंभिक दौर में यह कहा गया था कि भूकंप इतने पक्के मकानों को नहीं गिरा सकता, हो न हो, ये मकान ही नक़ली थे। घटिया मकान किसने बनाए, दोषी कौन था, इसकी जांच का काम सीधे केजीबी को सौंपा गया था। जांच का क़िस्सा लंबा है। याद रखने लायक़ बात इतनी ही है कि अब केजीबी ही भंग हो चुकी है।

जापान के कुछ भाग भी भूकंप की पट्टी में आते हैं। यहां के बारे में हम चौथी-पांची कक्षाओं में पढ़ते रहे हैं कि घर बांस और कागज़

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