प्रताप पीयूष/कानपुर-महिमा ।
(२०१ )
कानपुर-महिमा।
भुम्याँ गैये कानपूर की, माता नाउं न जानौं त्वार।
जग में महनामथ करिबे को, दुसरी बेला को अवतार॥
तुम्हरी महिमा जग जानत है, अक्किल देउतन कै चकराय।
बहिनी लागौ तुम कलिजुग की, सबके राखे चित्त डुलाय॥
एकै जोजन पर कम्पू ते, परिअर बसै रिषिन को गाँव।
सीता छोड़ी तहँ लछिमन ने, यह सब धरती को परभाउ॥
सील ते देउता जहँ मुँह फेरैं, तहँ मनइन को कौन हवाल।
तोताचसमी कानपूर की, है यह त्रेताजुग ते चाल॥
और जुगन की बातैं छोड़ौ, अब कलजुग को सुनौ हवाल।
राजा कनौजी कनउज वाले, उपजे हम हिन्दुन के काल॥
नाश कराय दओ भारत को, सिगरो धरम मुसल्लन हाथ।
हुआं की बातैं तौ हुअनै रहिं, अब आगे को सुनौ हवाल॥
सन सत्तावन में गलबा भौ, भये सब हिन्द हाल बेहाल।
बड़े लडै़यन बालक काटे, जिन मुँह बहै दूध की धार॥
धनि धनि भुम्यां कानपूर की, सत करमन की बिखम बलाय।
सतजुग त्रेता ते चलि आये, जहँ सब कलिजुग के व्यौहार॥
ऐसी धरती पै बसियत है, बेड़ा राम लगावै पार॥
[ 'कानपुर-माहात्म्य' से ]
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