प्रेमसागर/१३ अघासुरवध
तेरहवाँ अध्याय
श्रीशुकदेव बोले―सुनो महाराज, प्रात होते हो एक दिन श्रीकृष्ण बछड़े चरावन बन को चले, तिनके साथ सब ग्वाल बाल भी अपने अपने घर से छाक ले ले हो लिये और हार में जाय छाक घर बछरू चरने को छोड़, लगे खड़ी गेरू से तन चीत चीत बन के फल फूलों के गहने बनाये बनाय पहन पहन खेलने और पशु पंछियों की बोली बोल भाँति भाँति के कुतूहल कर कर नाचने गाने।
इतने में कंस का पठाया अघासुर नाम राक्षस आया, सो अति बड़ा अजगर हो मुँह पसार बैठा और सब सखा समेत श्रीकृष्ण भी खेलते खेलते वहीं जा निकले, जहाँ वह घात लगाये मुँह बाये बैठी थी। दूर से विसे देख ग्वाल बाल आपस में लगे कहने कि भाई, यह तो कोई पहाड़ है कि जिसकी कंदरा इतनी बड़ी है। ऐसे कहते औ बछड़े चराते उसके पास पहुँचे तब एक लड़का विसका मुँह खुला देख बोला―भाई, यह तो कोई अति भयावनी गुफा है, इसके भीतर न जावेगे, हमें देखतेही भय लगता है। फिर तोख नाम सखा बोला―चलो इसमें घुस चल। कृष्ण साथ रहते हम क्यो डरे। जो कोई असुर होगा तो बकासुर की रीति से मारा जायगा।
यो सब सखा खड़े बातें करते ही थे कि विसने एक ऐसी लंबी साँस खैंची जो बछड़ो समेत सब ग्वाल बाल उड़के विसके मुख में जा पड़े। विषभरी तत्ती भाप जो लगी तो लगे व्याकुल हो बछड़े रॉमने औ सखा पुकारते कि हे कृष्ण प्यारे, बेग सुध ले, नहीं तो
सब जल मरते है। विनकी पुकार सुनते ही आतुर हो श्रीकृष्ण भी उसके मुख में बड़े गये। विनने प्रसन्न हो मुँह मुंद लिया। तहाँ श्रीकृष्ण ने अपना शरीर इतना बढ़ाया कि विसका पेट फट गया। सब बछरू औ ग्वाल बाल निकल पड़े, तिस समय आनंद कर देवताओं ने फूल औ अमृत बरसाय सबकी तपत हर ली। तब ग्वाल बाल श्रीकृष्ण से कहने लगे कि भैया, इस असुर को मार आज तो तूने भले बचाये, नहीं सब मर चुके थे।