भारतवर्ष का इतिहास/२१-मुहम्मद ग़ोरी

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भारतवर्ष का इतिहास  (1919) 
द्वारा ई॰ मार्सडेन

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२१—मुहम्मद गोरी।
(११८६ ई॰ से १२०६ ई॰ तक)

महम्मद ग़ोरी।

१—ग़जनी में तुरकी वंश के बादशाहों को राज करते १५० बरस भी न बीते थे कि ग़ोर के अफ़गानों ने उनको जीत लिया। ग़ोर अफ़गानिस्तान के उत्तर-पश्चिम में एक छोटा सा देश था। इस समय यहां का बादशाह महम्मद शहाबुद्दीन था जो इतिहास में महम्मद ग़ोरी के नाम से प्रसिद्ध है। महमूद गज़नवी की तरह यह भी बड़ा बीर और लड़ाका था। यह भी जब तक जिया उत्तर हिन्दुस्थान पर धावा मारता रहा पर इसका मतलब यह न था कि नगरों मन्दिरों को लूटे। यह देश जीतकर राज करना चाहता था।

२—इस समय उत्तर हिन्दुस्थान में राजपूतों के चार बड़े बड़े [ ९७ ]राज थे। तोमरों की राजधानी दिल्ली, चौहानों की अजमेर, राठौरों की कन्नौज और बघेलों की गुजरात। दिल्ली के तोमर राजा के कोई बेटा न था। उसने अपने नाती पृथ्वीराज को जो रूपवान, बीर और चौहानों का सिरताज था गोद ले लिया। जब दिल्ली का राजा मरा तो पृथ्वीराज दिल्ली और अजमेर का स्वामी हो गया। राजा जयचन्द भी दिल्ली के तोमर राजा का नाती था। पृथ्वीराज के गोद लिये जाने से उसने अपनी बड़ी हानि समझी और पृथ्वीराज से जलने लगा।

पृथ्वीराज।

३—शहाबुद्दीन ने ११९१ ई॰ में भारत पर पहिले पहिल चढ़ाई की और सीधा दिल्ली की ओर चला। पृथ्वीराज बहुतसे राजपूत राजाओं के साथ एक बड़ी राजपूत सेना लेकर दिल्ली से अस्सी मील उत्तर थानेश्वर के स्थान पर शहाबुद्दीन से मिला। राजपूतों ने बड़ी बीरता दिखाई और अफ़गान हार गये। शहाबुद्दीन बड़ी कठिनाई से अपने प्राण लेकर भागा राजपूतों ने ४० मील तक अफ़गानों का पीछा किया। जो अफगान जीते बचे सिन्धु के पार भाग गये।

४—शहाबुद्दीन के जाने के पीछे कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर रचा। बड़े बड़े राजा और सरदार इकट्ठा हुए और संयोगिता को आज्ञा दी गई कि जिसे चाहे अपना बर चुने। इसी अवसर पर जयचन्द ने राजाधिराज होने का दावा किया और सारे राजपूत राजाओं को अपना आधीन मानकर सब के नाम न्योता भेजा। इस उत्सव में पृथ्वीराज [ ९८ ] द्वारपाल बनाया गया। पृथ्वीराज जयचन्द की बेटी को चाहता था। पाहुने को तरह बुलाया जाता तो उसके आने में संदेह ही क्या था। पर यह बड़ा अभिमानी था। द्वारपाल बनकर जाना स्वीकार न किया। उत्सव के दिन जब पृथ्वीराज न आया तो जयचन्द ने उसकी मूर्ति बनवाकर महल के फाटक पर खड़ी कर दी। स्वयंवर होने लगा। जो राजा दूर देश से इस आसरे में आये थे कि संयोगिता हमको बरेगी एक पांति में खड़े हो गये और संयोगिता को आज्ञा दी गई कि उनके बीच से चले और जिसे चाहे बर ले। संयोगिता के हाथ में फूलों की माला थी। वह बर देखती भालती पांति के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चली गई और फाटक पर जाकर पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में उसने माला डाल दी। पृथ्वीराज भेस बदले अपने कुछ सिपाही साथ में लिये वहीं उपस्थित था। तुरन्त मण्डप में घुस गया और संयोगिता को अपने घोड़े पर बैठाकर दिल्ली की ओर ले उड़ा।

५—जयचन्द पृथ्वीराज से लड़ा पर उसे जीत न सका। उसने क्रोध में आकर नीचपने से शहाबुद्दीन के पास सन्देसा भेजा कि आप एक बार दिल्ली पर फिर चढ़ाई करें और मैं आपकी मदद करूंगा। शहाबुद्दीन पहलेही से बड़ी पलटन जमा किये बैठा था; और उसने ग़ोरी सरदारों और सेनापतियों को बहुत ही झिड़का था जो थानेश्वर के मैदान से भाग निकले थे; तोबड़ों में जौ का दाना भरवा कर उनके मुंह बन्धवाया और गदहों की तरह उनको शहर से निकलवा दिया था। जयचन्द का सन्देसा पाकर ११९३ ई॰ में फिर दिल्ली की तरफ़ चला। डेढ़ लाख सिपाही अच्छे अफ़गानी घोड़े पर सवार इसके साथ थे। अबकी बार जयचन्द और राठौर राजा पृथ्वीराज की सहायता को न आये। पृथ्वीराज अपने चौहानों को लेकर थानेश्वर के मदान में फिर [ ९९ ] शहाबुद्दीन से भिड़ा। चौहान अपने राजा और देश के नाम पर जी तोड़ कर लड़े पर महाबीर और जानपर खेलनेवाले अफ़गानों ने उन्हें जीत लिया। राजपूत तितिर बितिर होकर भागे और पृथ्वीराज मारा गया। पृथ्वीराज की रानी जयचन्द की बेटी अपने पति के साथ चिता पर जलकर सती हो गई। महम्मद ग़ोरी ने पहिले दिल्ली पर दख़ल किया पीछे अजमेर पहुंचा और बहुत सा लूट का माल लेकर ग़ज़नी चला गया। कुतुबुद्दीन उसका नायब भारत के उन प्रान्तों पर राज करने के लिये जो महम्मद ग़ोरी नेजीते थे यहीं रह गया।

६—शहाबुद्दीन ११९४ ई॰ में फिर भारत में आया और अबकी बार कनौज के राजा जयचन्द पर चढ़ दौड़ा। जयचन्द बड़ी बीरता से लड़ा पर बिना चौहानों की सहायता के वह पठानों को न हरा सका और पृथ्वीराज की तरह वह भी मारा गया। ग़ोरियों ने कन्नौज और बनारस ले लिया। और नगरों की कौन गिनती है अकेले बनारस में मुसलमानों ने एक हज़ार मन्दिर नष्ट कर दिये और चार हज़ार ऊंटो पर लूट का माल लाद ले गये।

७—राठौर और उत्तरीय भारत की अनेक राजपूत जातियां गंगा यमुना के आस पास के देशों से जहां इनके पुरुषा डेढ़ सौ बरस से बसते थे इस समय अपना परिवार और माल असबाब लेकर दक्षिण और पश्चिम मारवाड़ और अरवली पहाड़ के पास के देश में जा बसीं। उन्हीं के कारण अब यह देश राजपूताना कहलाता है।

८—महम्मद ग़ोरी और उसके सेनापतियों ने लगभग सारा उत्तरीय हिन्दुस्थान जीत लिया। उन में से एक ने जिसका नाम बख्तियार ख़िलजी था ११९९ ई॰ में अवध और बिहार को और १२०३ ई॰ में बङ्गाले को जीता। इस समय बङ्गाले की [ १०० ] राजधानी एक नगर लखनौती था। अफ़गानों ने बदल कर अपने देश के नाम पर इसको ग़ोर की पदवी दी और वह बिगड़ कर गौड़ बङ्गाला हो गया। बूढ़ा बङ्गाली राजा लक्ष्मणसेन बड़ी कठिनाई से ग़ोरियोंके हाथ से बचा। वह खाना खा रहा था जब अफ़गान महलों में घुस आये और उसे पकड़ ही लेते कि वह एक चोर दरवाज़े से निकल भागा और उड़ैसा पहुंचा। वहां उसने अपना जन्म जगन्नाथ की सेवा में बिता दिया। इसके पीछे ग़ोरियों ने पहिले गुजरात के बघेले राजपूतों को परास्त किया फिर गवालियर ले लिया; पर मालवा न जीत सके।

९—भारत की अन्तिम लड़ाई के पीछे महम्मद ग़ोरी पञ्जाब की राह अपने देश को लौटा जा रहा था कि एक पहाड़ी जाति के लोग जिन्हैं घखर कहते हैं रातको इसके डेरे पर टूट पड़े और इसको मार डाला। गोरी के साथी इसकी लाश को ग़जनी ले गये और वहीं उसे गाड़ दी। उसके पीछे उसका नायब कुतुबुद्दीन भारत के जीते हुए प्रान्तों का स्वतंत्र अधिकारी होकर दिल्ली का सुलतान बन गया। महम्मद ग़ोरी भारत का पहिला जीतनेवाला था। महमूद ग़जनवी की नाईं इसका अभिप्राय यह न था कि लूट खसोट कर ग़ज़नी में जा बैठे। यह भारत पर शासन करने आया था और इसकी मनोकामना पूरी हुई।