भारतवर्ष का इतिहास/२२—पठान बादशाह

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भारतवर्ष का इतिहास  (1919) 
द्वारा ई॰ मार्सडेन

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२२—पठान बादशाह।
(१२०६ ई॰ से १५२६ ई॰ तक)

१—१२०६ से १५२६ ई॰ तक ३२० बरस अफ़ग़ान बादशाहों ने दिल्ली में राज किया। इन में बहुतेरे पठान वंश के थे इस से हिन्दू सब को पठान कहते हैं। यह लोग अफ़गानिस्तान [ १०१ ] से आये थे। यह सब एक ही क़बीले (कुल) के न थे। इन के पांच वंशों ने बादशाहो की; (१) गुलाम (दास) (२) खिलजी (३) तुग़लक (४) सैयद (५) लोधी।

२—मुसलमानों ने एक एक करके हिन्दुओं के सब राज छीन लिये। पठानों के समय में मदा कहीं न कहीं लड़ाई होती रही। हिन्दू भी कट कट कर लड़ते थे और मुसलमानों को सहज में राज न देते। इन में कई राज ऐसे भी हैं जो कभी जीते न गये। तुर्कों तातारियों अफ़गानियों के झुंड के झुंड चले आते थे और देश दबाते जाते थे। यह नये आये विलायती कहीं हिन्दुओं से भिड़ जाते और कहीं उन भाइयों से लड़ते थे जो पहिले आकर हिन्दुस्थान में बसे थे।

३—जिस के पास रुपया पैसा गहना होता था वह उसे गड़हा खोद कर गाड़ देता था। यह डर लगा रहता था कि कदाचित् कोई बैरी आये और छीन कर ले जाय। हम लोग जो आज कल सुख चैन से दिन व्यतीत कर रहे हैं अनुमान भी नहीं कर सकते कि पठानों के समय में भारत पर कैसी कैसी आपत्तियां आई थीं। हिन्दुओं के पुराने पुराने मन्दिर बहुधा तोड़ दिये गये थे। बहुतसी उपजाऊ भूमि बे खेती बारी के पड़ी थी। इसका कारण यह था कि बेचारे निर्धनी किसान अपने प्राणों के भय से बनों में भाग गये थे। बहुत से हिन्दू मुसलमान हो गये। इनमें से कुछ तो इस आशा पर मुसलमान हुए थे कि बिजयी जाति की सेना और उनके दफ़तरों में उच्च पद को प्राप्त हों और बहुतेरे प्राणों के भय से। इसी कारण पठानों के समय में बहुत से सुप्रसिद्ध सरदार ऐसे थे जो वास्तव में हिन्दू थे पीछे मुसलमान हो गये थे।

४—जिस भांति प्राचीन काल में आर्य लोग पंजाब से यमुना [ १०२ ] और गंगा के उत्तर में बढ़ते बढ़ते पूर्व की ओर गये थे उसी भांति तुर्कों अफ़ग़ानों और ईरानियों ने इस समय सिंधु नदी से चलकर पूर्व की ओर जाकर दिल्ली अवध बिहार और बंगाले के सूबों को आधीन किया। १२०६ ई॰ में कुतुबुद्दीन दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा और उसी दिन से धीरे धीरे सारा भारत मुसलमानों के राज में आ गया। बहुत से मनचले ईरानी और तुर्किस्तानी यह सुनकर कि उनके मित्र, देशबन्धु जो भारत गये थे धन सम्पत्ति प्राप्त करके वहीं बस गये हैं अपने देशों को छोड़ भारत में चले आये और अपने भाग्य को परखने लगे। मुसलमान सम्राटों और प्रान्ताधिकारियों ने उनको भूमि आदि देकर बसा लिया। आजकल उत्तरीय भारत में जो बहुत से प्रसिद्ध मुसलमानी वंश हैं इसी प्रकार इस देश में आकर बसे थे। छोटे छोटे मुसलमान सरदार अपने अपने साथियों को लेकर भारत में चारों ओर से निकल पड़े और इसी प्रकार रियासतें बना बैठे। जब तक दिल्ली का सम्राट बीर और बलवान रहा यह लोग उसे कर देते और उसकी सेवकाई का दम भरते रहे। परन्तु जब वह दुर्बल हो गया तो जितने रईस थे सब स्वाधीन बन गये और कोई किसी का आधीन न रहा।