भारतवर्ष का इतिहास/२६—तैमूर लंग

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२६—तैमूर लंग।

१—जिस समय में तुग़लक वंश के अन्तिम बादशाह का दिल्ली में राज था, तुर्किस्तान में एक बड़ा शक्तिमान सर्दार जिसका नाम तिमर या तैमूर था राज करता था।

तैमूर लंग।

तैमूर का शरीर लम्बा और रंग गोरा, ऊंचा माथा चमकीले नेत्र और कड़ी बोली थी। इसकी टांगें लम्बी और उंगलियां मोटी मोटी थीं। यह लंगड़ा था इसी कारण इसे तैमूर लंग कहते हैं। यह बास्तव में तुर्क था और शहर का रहनेवाला था। परन्तु इसकी सेना तातारियों से भरी थी। इस कारण इसको भी तैमूर तातारी कहते हैं।

२—सन् १३९८ ई॰ में तैमूर ने तुर्की तातारियों और इरानियों की एक बड़ी भारी सेना के साथ उत्तर-पश्चिम की राह से आकर हिन्दुस्थान पर धावा मारा और मार [ १२० ] काट मचा दी। अब इसको पांच सौ बरस से अधिक हो चुके हैं परन्तु न इससे पहिले कभी ऐसी मार धाड़ हुई और न इससे पीछे। दिल्ली का पठान बादशाह आप मुसलमान था; इस कारण यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसने इतनी मार काट मुसलमान दीन के बढ़ाने के लिये की थी। इसकी तो अभिलाषा यह थी कि हिन्दुस्थान को धड़ाधड़ लूटे मारे और यही इसने कर दिखाया।

३—तैमूर अपने तातारी टीड़ीदल को साथ लेकर अफ़ग़ानिस्तान से होता हुआ पंजाब में आया और कूच पर कूच करता हुआ धीरे धीरे दिल्ली पहुंचा; राह में जो स्थान पड़े सब को सफ़ाचट करके छोड़ गया। जहां जहां आबादी थी वहां लाशों के और आग की प्रचण्ड ज्वाला के सिवा और कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। जब दिल्ली के पास पहुंचा तब उसके साथ एक लाख कैदियों की भीड़भाड़ थी। उसने देखा कि कौन इनका बोझ सम्हाले और देख भाल करे, इस कारण १५ बरस से अधिक आयुवाले कैदियों को मरवा डाला।

४—यह समाचार दिल्ली में जसे पहुंचा कि सब के उसी समय भय के मारे मुंह पीले हो गये। बादशाह छिपकर शहर के चार दिवारी के अन्दर जा बैठा; पर थोड़े दिनों के पीछे जब मन में तरङ्ग उठी तो सेना लेकर नगर के बाहर निकल आया।

५—तैमूर अवसर पाकर तुरन्त बादशाह पर चढ़ आया। महमूद तुग़लक़ की हार हुई। पांच दिन बराबर तातारी शहर में घूमे; कहीं आदमियों को मारते थे; कहीं आग लगाते थे। निदान जब थक गये और लूट खसोट भी चुके तो बहुत से कैदी और लूट का धन लेकर हिमालय के नीचे पंजाब में पहुंचे और वहां से काबुल होते हुए तुर्किस्तान को लौट गये। [ १२१ ]६—दिल्ली चौपट हो गई। तैमूर पांचही महीने हिन्दुस्थान में रहा था। पर जो जो अत्याचार और उपद्रव उसने और उसके नीचकर्मी तातारी सिपाहियों ने किये, आज तक हिन्दुस्थान के वासियों को नहीं भूले।