भारतवर्ष का इतिहास/२७—हिन्दुस्थान की दशा तैमूर के जाने के पीछे

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२७—हिन्दुस्थान की दशा तैमूर के जाने के पीछे।

(सन् १४०० ई॰ से सन् १५०० ई॰ तक)
(१) सैयद वंश।

(सन् १४१४ ई॰ से सन् १४५० ई॰ तक)
१—तैमूर के हिन्दुस्थान से चले जाने के ३६ बरस पीछे तक दिल्ली की बादशाहत नाममात्र को रह गई। सयद ख़िजिर खां जो पंजाब का हाकिम था बादशाह बन बैठा। इसकी बादशाही दिल्ली शहर और उसके आस पास थोड़ी दूर तक थी। इसने ७ बरस बादशाहत की। इसके पीछे इसका बेटा मुबारक बादशाह हुआ। बारह बरस राज करने के पीछे यह भी मार डाला गया और उसका भतीजा सयद महम्मद सन् १४३३ ई॰ में सिंहासन पर बैठा। इसके समय में मालवे के सुलतान ने दिल्ली पर चढ़ाई की। पंजाब का सूबेदार बहलोल खां लोधी इसकी सहायता को आया। यह भी सन् १४४३ ई॰ में मर गया। और इसका बेटा अलाउद्दीन बादशाह हुआ। परन्तु अलाउद्दीन से राज का प्रबन्ध संभल न सका और उसने अपने आप सूबेदार बहलोल खां को बादशाही का अधिकार दे दिया और अपनी ज़मीन्दारी पर चला गया और वहां २८ बरस सुख से बिताकर परलोक सिधारा। [ १२२ ]
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(२) लोधी वंश।

(सन् १४५० ई॰ से सन् १५२६ ई॰ तक)

१—बहलोल खां लोधी ने दिल्ली के बादशाह होने पर पंजाब के सूबे को भी दिल्ली में मिला लिया। यह सैयदों की अपेक्षा बड़ा शक्तिमान बादशाह था। इसने २६ बरस की लड़ाई के पीछे जौनपुर की बादशाहत को जो पूर्व में अवध और इलाहाबाद के सूबों से घिरी थी अपने अधिकार में कर लिया। इसके शासन में पंजाब से लेकर बिहार तक सारा देश था। मुसलमान ऐतिहासिक लिखते हैं कि इसने बहुत अच्छी बादशाही की। इसको ऊपरी दिखाव की इच्छा न थी। यह कहा करता था कि ऊपरी धूम धाम से कोई लाभ नहीं है। अच्छा और ठीक कर लेना, देश का अच्छा प्रबन्ध करना ही धूम धाम और बड़ाई है। इसने सन् १४५० ई॰ से सन् १४८८ ई॰ तक अड़तीस बरस राज किया। बहलोल खां के मरने के पीछे उसका बेटा सिकन्दर लोधी बाप की राजगद्दी का स्वामी हुआ।

२—सिकन्दर लोधीने बाप के राज को और भी बढ़ाया और बिहार के प्रान्तों को जो जौनपुर से दूर बसे थे जीत कर अपने राज में मिला लिया। मुसलमान प्रजा के साथ उसका जियादः अच्छा बर्ताव था। उसने दिल्ली को छोड़ कर आगरे को राजधानी बनाया और सन् १४८८ ई॰ से सन् १५१७ ई॰ तक २९ बरस राज करके मर गया।

३—इस वंश का तीसरा और अन्तिम बादशाह इब्राहीम लोधी था। उसने कुल नौ बरस राज किया। इसका प्रबन्ध अच्छा न था। उसने अपने एक भाई को जो जौनपुर का सूबेदार था मरवा डाला; और दूसरे को बन्दी कर दिया। पुरषों के जीते हुए [ १२४ ] देश भी उसके हाथ से निकल गये। अफ़गानों के बहुत से बड़े बड़े अमीर दिल्ली के शाह को अपना शिरोमणि समझने लगे थे।

इब्राहिम लोधी।

यह छोटी छोटी रियासतों के अधिकारी थे और सम्राट उनका मान करता था और इन्हीं उमराओं और ऊंचे पदवालों की सहायता पर राज थमा था। इब्राहीम ने यह रीति भी बदल दी। जब यह राजसभा में आते तो उनको नौकरों की तरह हाथ जोड़े खड़ा रखता। उनको अधिकार न था कि बिना बुलाये बादशाह के सामने जीभ तक डुला सकें। अफ़गानी लोग जो अपने मान और रखरखाव पर बड़ा ध्यान रखते थे इस चाल से बहुत बिगड़ गये। बहुतेरे जिनसे अपनी मानहानि न सही गई मरवा डाले गये और बहुत से बिद्रोही हो गये, जैसे चित्तौड़ का राजा संग्राम सिंह और पंजाब का सूबेदार दौलत खां। इन्हों ने काबुल के मुग़ल बादशाह को सन्देश भेजा कि आप आयं और इब्राहीम से राज छीन लें। उसने प्रसन्नता पूर्वक इस बात को स्वीकार किया। इब्राहीम की हार हुई और हिन्दुस्थान मुग़ल बादशाहों के हाथ आ गया।

४—इस समय उत्तरीय और मध्य भारत में मुसलमानों की कुछ रियासतें थीं। इन सब के अफ़गान मालिक किसी समय दिल्ली के बादशाह के सूबेदार थे। पञ्जाब, बङ्गाला, जौनपूर, गुजरात, मालवा, मुलतान, सिन्ध सब पठानों की रियासतें थीं। अरवली पर्वत के दक्षिण की ओर राजपूताने में कई राजा राज करते थे। उनमें सब से शक्तिमान उदयपूर या चित्तौड़ का राजा था। [ १२५ ]५—दखिन में दो बड़े राज थे, मध्य में पठानों का वह बड़ा राज्य जिसे बहमनी कहते थे और दक्षिण में हिन्दुओं का विजयनगर का राज्य जिसमें दखिन का सारा भाग मिला हुआ था। अगले अध्याय में यह सब बातें कही जायंगी कि पठान दखिन में कब और किस भांति फैले; बहमनी और बिजयनगर के राज कब और किस भांति बने; और इनके पीछे दक्षिण में मुसलमानों ने कैसे छोटे छोटे राज स्थापन किये।