भारतवर्ष का इतिहास/२९—बहमनी और विजयनगर के राज्य

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२९—बहमनी और विजयनगर के राज्य।

१—मुहम्मद तुग़लक के राज में ऐसा गड़बड़ मचा कि दखिन के सारे मुसलमान बाग़ी हो गये और हसन गंगू जो सब से जबर्दस्त था सन् १३४७ ई॰ में गुलबर्गे को अपनी राजधानी बनाकर [ १२८ ] स्वतन्त्र बादशाह बन गया। हसन गंगू की बादशाही बहमनी बादशाही के नाम प्रसिद्ध है। यह सन् १५२६ ई॰ तक १६० बरस रही। वह सारा देश जो अब हैदराबाद के नाम से प्रसिद्ध है इसी का भाग था। जिस समय लोधी, तुग़लक, सैयद दिल्ली के बादशाह थे बहमनी कुल के बादशाह गुलबर्गे में राज करते थे।

२—हसन एक दरिद्र अफ़ग़ान था जो तीस बरस तक गंगा नामी एक ब्राह्मण के खेतों में काम करता था। एक दिन हसन को खेतों में कुछ गड़ा हुआ धन मिला। यह उसने अपने मालिक को दे दिया। ब्राह्मण उसकी इमान्दारी से इतना प्रसन्न हुआ कि दिल्ली के बादशाह की सरकार में जहां इसकी बहुत कुछ प्रतिष्ठा थी, उसने कह सुनकर हसन को सौ सवारों का सर्दार बनवा दिया। जिस समय मुहम्मद तुग़लक देवगिरि अर्थात दौलताबाद को अपनी राजधानी बनाने के बिचार में था, हसन अपने सौ तिलङ्गों को संग लिये दखिन पहुंचा और दूसरे अफ़गानी सरदारों की भांति एक छोटे से इलाके का हाकिम बनकर वहीं बस गया। जब यह बादशाह हुआ इसने अपने पुराने स्वामी गंगा मिश्र को मन्त्री के पद पर रक्खा और आप सुलतान हसन गंगू बहमनी की पदवी धारण की। बहमन अथवा बहमनी ब्राह्मण शब्द का अपभ्रंश है। उसके उत्तराधिकारियों ने भी ब्राह्मणों को अपना मन्त्री बनाया और अपनी हिन्दू प्रजा के साथ भी अच्छा बर्ताव किया।

३—इसी समय के लगभग जब बहमनी राज का जन्म हुआ तो तुंगभद्रा नदी के तट पर विजयनगर का एक हिन्दू राज स्थापित हुआ। इस राज की नीव डालनेवाले हरिहर और बुक्काराय नामी दो भाई थे जिन्हों ने मलिक काफ़ूर के आक्रमण के समय वारङ्गल से भाग कर यहां शरण ली थी। उस समय विजयनगर का राज्य सब हिन्दू राज्यों से ज़बर्दस्त था। सन् १३३६ ई॰ में [ १२९ ] इसकी नीव पड़ी थी और २३० बरस के लगभग अर्थात् १५९५ ई॰ तक यह राज्य बना रहा। कृष्णा नदी से लेकर रासकुमारी तक सारा देश इसके आधीन था। बहुत से छोटे छोटे रईस और हाकिम इसके आधीन थे जो नायक कहलाते थे और विजयनगर को कर देते थे। इनमें से मैसूर का नायक सब से बड़ा था।

विजयनगर के राजा का हथसार।

गढ़ों और राजमन्दिरों में के टूटे फूटे खंडहर जो अब तक वर्तमान हैं इस राज्य की पूर्व अवस्था को भली भांति प्रगट करते हैं। इस अन्तिम समय में हिन्दुओं को विद्या और कला की जो कुछ बढ़ती हुई विजयनगर ही में हुई। विजयनगर के राजा वैष्णव थे। इनके राज में दखिन में प्रत्येक स्थान पर बुद्ध और जैन मत को जगह हिन्दू धर्म का प्रचार हुआ। विजयनगर के [ १३० ] पहिले दो राजाओं के मन्त्री प्रसिद्ध ब्राह्मण माधवाचार्य थे। दखिन में हिन्दू देवताओं की आराधना का फिर से प्रचार होना इन्हीं के परिश्रम का फल समझना चाहिये।

४—पहिले तो बहमनी सुलतान और विजयनगर के राजा एक दूसरे के मित्र और शुभचिन्तक थे। हिन्दू सैनिक विशेष करके मरहठे बहमनी सेना में भरती होकर लड़ते थे। मुसलमान सिपाही विजयनगर की सेना में भरती होते थे पर जब दोनों रियासतें ज़ोर पकड़ गईं और दिल्ली के बादशाह का डर जाता रहा तो आपुस में झगड़े होने लगे और बड़ी बड़ी लड़ाइयां हुईं।

५—बिजयनगर में १५० बरस बीतने पर बुक्का वंश का अन्त हुआ और एक दूसरा वंश गद्दी पर बैठा। इस परिवार के पहिले राजा का नाम नृसिंह था और इसीके नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। इस वंश के कृष्ण राजा और बहमनी सुलतान में घोर युद्ध हुआ। एक समय सुलतान के यहां नाच रङ्ग का जलसा था, सुलतान शराब के नशे में चूर था। गवैयों के गाने बजाने से बहुत प्रसन्न हुआ और तरङ्ग में आकर कृष्ण राजा के कोषाध्यक्ष को गवैयों को इनाम देने का पत्र दिया। इसका अभिप्राय यह था कि कृष्ण राजा मेरे आधीन है और अवश्य मेरी आज्ञा का पालन करेगा। कृष्ण राजा को यह पत्र पढ़ कर बड़ा क्रोध आया। वह सेना लेकर तुङ्गभद्रा के पार गया और एक बहमनी क़िला जीत कर उसके कुल मनुष्य मार डाले। उधर सुलतान को इसका समाचार मिला। उसने प्रतिज्ञा की कि जबतक एक लाख हिन्दू न मार डालूंगा अपनी तलवार म्यान में न करूंगा। यह भी सेना लेकर नदी के पार गया और मर्द औरत बच्चा जो कोई उसके सामने पड़ा तलवार से साफ करके उसने एक लाख की सौगन्ध पूरी को। अब कृष्ण राजा के ब्राह्मण मन्त्री ने राजा को [ १३१ ] समझाया कि देवता आपसे अप्रसन्न हैं और उनके क्रोध से बचने का यही उपाय है कि आप सुलतान की आज्ञानुसार अपने कोष से रुपया दे दें। राजा ने यह सोच समझ कर रुपया दे दिया और लड़ाई समाप्त हुई।

६—बहमनी बादशाहों ने गुलबर्गे में राज किया। इनके पीछे अहमद शाह ने १४३१ ई॰ में गुलबर्गा छोड़ कर बीदर को अपनी राजधानी बनाया। यह बहमनी वंश का सब से बड़ा बादशाह था। इसने बिजयनगर के राजा देव राजा को परास्त किया। राजा ने उसे अपनी बेटी ब्याह दी और बड़ा भारी कर देना स्वीकार किया। तीन दिन तक ब्याह का जलसा रहा इसके पीछे जब सुलतान अपने डेरों को चला तो राजा उसके साथ उसके डेरे तक न गया किन्तु आधी ही दूर से लौट आया। यह बात बादशाह को बुरी लगी। वह इसको न भूला और कुछ बरस बीतने पर फिर राजा से लड़ना निश्चय किया पर इस बार राजा ने उसके ऐसे दांत खट्टे किये और युद्ध में परास्त किया कि वह लज्जा और शोक से मरही गया।

७—सन् १५०० ई॰ में बहमनी राज्य का ढांचा टूटने लगा। चार अफ़गान रईस जो सुलतान की ओर से भिन्न भिन्न इलाक़ों के हाकिम थे सुलतान की आधीनता से अलग होकर स्वतंत्र हो गये। अन्त में यह हुआ कि बीदर और उसके आस पास का देश तो सुलतान के अधिकार में रहा और सब उसके हाथ से निकल गया। यह भी उसके मंत्री ने दबा लिया और आप बीदर का सुलतान बन बैठा।