भारतवर्ष का इतिहास/३७—जहांगीर

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भारतवर्ष का इतिहास  (1919) 
द्वारा ई॰ मार्सडेन

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३७—जहांगीर।
(१६०५ ई॰ से १६२७ ई॰ तक)
जहांगीर।

१—सलीम जहांगीर की पदवी धारण करके सिंहासन पर बैठा। इसकी मां राजपूत राजकुमारी थी। इस कारण यह भी आधा राजपूत ही था। इसके दो भाई मुराद और दानियाल अकबर के आगे ही मर चुके थे परन्तु उसी के बेटे खुसरो ने, जो जोधाबाई के पेट से था, अपने मामा राजा मानसिंह और अपने ससुरे खानज़मान की सहायता से जो अकबर का सब से सिरचढ़ा सेनापति था, राज लेने के लिये बड़ा ज़ोर मारा। मरते समय अकबर ने अपने दरबारी और अफ़सरों को बुलाकर घोषणा कर दी थी कि मेरे पीछे सलीम मेरे मुकुट का अधिकारी होगा।

२—जहांगीर खुसरो से रुष्ट था; इससे खुसरो के साथ अच्छा बर्ताव भी न करता था। सिंहासन पर बैठने के चार महीने पीछे आधी रात को सोते से जगाकर चर ने जहांगीर को यह [ १७९ ] समाचार दिया कि खुसरो दिल्ली भाग गया। वहां उसने कुछ सेना भी इकट्ठी कर ली है और लाहोर पहुंच गया है। जहांगीर उसके पीछे चला। लाहोर पहुंचकर उसने देखा कि क़िला घिरा पड़ा है। खुसरो की सेना की हार हुई और वह भागा। सिन्धु नदी पार जाने का उपाय कर रहा था कि पकड़ा गया और पांवों में बेड़ी पहिने बाप के सामने लाया गया। उसके ७०० साथी बड़ी निठुराई से बध किये गये और वह सोलह बरस तक क़ैद में रहा; इसके पीछे अपने सगे भाई खुर्रम (शाहजहां) के हवाले किया गया और खुर्रम ने उसे मरवा डाला।

३—अकबर की नाईं जहांगीर ने भी कई राजपूत राजकुमारियों के साथ बिवाह किया। उनमें एक से खुर्रम था जो पीछे शाहजहां के नाम से सिंहासन पर बैठा। पर बादशाह होने के छठे साल जहांगीर ने एक ईरानी स्त्री से ब्याह किया। यह नूरजहां थी जो भारतवर्ष की एक प्रसिद्ध मलका हो गई है।

४—नूरजहां का बाप तुर्किस्तान का रहनेवाला था; अपनी जन्मभूमि में दरिद्रता से घबराकर भारत में चला आया था। लाहोर में उसके एक पुराने मित्र से भेंट हुई। उसकी सहायता से दर्बार में एक ऊंचे पद पर नियुक्त हो गया। वह बुद्धिमान मनुष्य था; जल्दी जल्दी बढ़ता गया और अन्त में ख़जाने का हाकिम बना दिया गया। उसकी इकलौती बेटी मेहरुन्निसा बड़ी सुन्दर और बुद्धिमती थी। उसके पिता ने उसकी मंगनी एक नवयुवक ईरानी सर्दार शेर अफ़गन से, जो बङ्गाले का हाकिम था, कर दी थी।

५—अभी ब्याह न होने पाया था कि सलीम की दृष्टि उसपर पड़ी। शाहज़ादा उसके प्रेम में फँस गया और उससे निकाह [ १८० ] करना चाहा। नूरजहां का पिता शेर अफ़गन के साथ मंगनी कर चुका था और अपने बचन से फिरना नहीं चाहता था। सलीम ने अकबर से फ़र्याद की पर अकबर ने बड़ी रुखाई से उसकी सहायता करने से इनकार किया। फिर मेहरुन्निसा का ब्याह शेर अफ़गन के साथ हो गया और वह उसके साथ बङ्गाले चली गई।

नूरजहां।

सिंहासन पर बैठते ही सलीम को कोई रोक टोक न रही। उसने शेर अफ़गन को मरवा डाला और उसकी स्त्री को राजमहल में लेकर उसका नाम नूरमहल रक्खा। स्वामी के मारे जाने पर नूरजहां बड़ी दुखित थी। क्रोध और दुःख के कारण उसने छः बरस तक जहांगीर की सूरत न देखी। अन्त में उसका क्रोध शान्त हुआ। मातम के भी कई बरस हो चुके थे इस कारण उसने बादशाह से ब्याह करना स्वीकार कर लिया।

६—अब फिर उसका नाम बदला गया और इसबार उसको नूरजहां की पदवी मिली। अब राज का पूरा अधिकार नूरजहां के हाथ में चला गया। जहांगीर ने सब काम उसी पर छोड़ दिये। सरकारी कागज़ों और आज्ञापत्रों पर जहांगीर के बदले नूरजहां के हस्ताक्षर होने लगे। नूरजहां का बाप बड़े वज़ीर के पद पर नियत किया गया। उसका भाई सभासदों में पहिले नम्बर पर था। बीस बरस तक नाम को जहांगीर बादशाह था पर वास्तव में नूरजहां बादशाही करती थी। जहांगीर कहा करता था कि मुझको तो पेट भर स्वादिष्ट भोजन और पीने को उत्तम शराब मिल जाया करे इसके सिवाय मुझे और कुछ न चाहिये। वह यह जानता था कि राज का प्रबंध मलका मुझसे अच्छा कर सकती है; [ १८१ ] इस कारण उसको कोई रोक टोक न करता था। लोग अनुमान करते हैं कि गुलाब का इत्र नूरजहां ही ने निकाला। हम्माम के हौज़ों में गुलाब के फूल भरे रहा करते थे। मलका ने एक दिन पानी के ऊपर कुछ तेल सा तरता हुआ देखा। बस मलका को इत्र बनाने की रीति सूझ गई और तब से गुलाब का इत्र तैयार होने लगा।

७—यह भी जहांगीर और भारतवर्ष के अच्छे कर्मों का फल था कि मलका राज्य के प्रबंध में ऐसी चतुर थी, नहीं तो जहांगीर में न तो अकबर के समान बुद्धि थी और न उसका सा स्वभाव था। इसको सिवाय आराम और खुशी के और किसी बात का ध्यान ही न था। मुग़ल बादशाहों में इसके समान शराबी और आराम तलब कोई और नहीं हुआ।

८—भारतवर्ष के मुग़ल बादशाहों की चर्चा इङ्गलैंड में भी पहुंच गई थी। जहांगीर को वहां "बड़ा मोगल" कहते थे। १६१५ ई॰ में इङ्गलैंड के बादशाह पहिले जेम्स ने जहांगीर के पास एक राजदूत भेजा जिसका नाम सर टामस रो था। उसकी इच्छा यह थी कि अङ्गरेज़ी सौदागरों को भारतवर्ष में व्यापार करने की आज्ञा मिल जाय। उस समय सूरत बन्दर में अङ्गरेज़ी सौदागरों की एक कोठी थी। सर टामस रो जहांगीर के दर्बार में तीन बरस रहा। उसने जो कुछ वृत्तान्त भारतवर्ष का सुना या देखा था लिख डाला। सर टामस रो का कथन है कि राज्य का प्रबंध ऐसा अच्छा न था जैसा अकबर के समय में था। सूबेदार प्रजा को सताते थे। देश में डाकुओं और लुटेरों ने बड़ा गड़बड़ मचा रक्खा था। जब तक बचाव के निमित्त पूरा जङ्गी सामान न रहता यात्रा करना बड़े जोखिम का काम था। सर टामस रो बादशाह के मुजरे के निमित्त दर्बार में जाया करता था। बादशाह एक [ १८२ ] नीचे तख़्त पर इजलास करता था जिसमें हीरे और लाल जड़े हुए थे।

सर टामस रो।

कभी कभी बादशाह सर टामस रो को खाने के लिये संग बिठालता था और इतनी शराब पीता था कि नशे में मतवाला हो जाता था। तुजुक जहांगीरी में बादशाह स्वयं लिखता है कि जब मैं जवान था तो दिन भर में बीस प्याली 'मै' (मदिरा) की पिया करता था पर तख़्त पर बैठने के दिन से पांच ही सात प्यालियां पीकर संतुष्ट हो जाता हूं। खाने पर बैठने के समय किसी की क्या मजाल थी कि जबतक बादशाह को नींद न आजाय उठ खड़ा हो। जब सर टामस रो ने भारतवर्ष में व्यापार करने की आज्ञा मांगी तो बादशाह ने उत्तर दिया कि मलका से कहो, वही देश का प्रबंध करती है। इस कारण इस बात की आवश्यकता हुई कि नूरजहां के भाई आसफ़जाह को एक बहुमूल्य जड़ाऊ आभूषण भेंट किया जाय। भेंट देने पर सर टामस का कार्य सिद्ध हो गया, अर्थात् भारतवर्ष में व्यापार करने की आज्ञा मिल गई।

९—जहांगीर के राज में स्थान स्थान पर लड़ाइयां और बग़ावते होती रहीं विशेष कर दखिन में। जहांगीर अपने जीवन चरित में लिखता है कि एक बार कन्नौज में बिद्रोह हुआ और तीस हज़ार बिद्रोही मारे गये; दस हजार के सिर काट कर दिल्ली भेज दिये गये और दस हज़ार पेड़ों पर उल्टे टांगे गये। बादशाह लिखता है कि कोई भी सूबा ऐसा न था जिसमें लगभग पांच लाख बागी मारे न गये हों। [ १८३ ]१०—जहांगीर के चार बेटे थे—खुसरो, पर्वेज़, खुर्रम अथवा शाहजहां, और शह्रयार। इनमें सब से प्यारा शाहजहां था। उसका निकाह नूरजहां की भतीजी के साथ हुआ था। जहां कहीं लड़ाई भिड़ाई होती थी सेना के साथ शाहजहां ही भेजा जाता था। पर नूरजहां की एक बेटी शेर अफ़गन से थी वह शहरयार से ब्याही थी और नूरजहां ने बहुत चाहा कि जहांगीर का शहरयार ही उत्तराधिकारी हो।

११—जहांगीर के अन्तिम समय में खुर्रम ने उसे बहुत दिक़ किया। यह बादशाह बनने का आसरा करते करते थक गया था। इसने शाहजहां की पदवी धारण की और इस बात के उद्योग में लगा कि ज़बर्दस्ती राज का मालिक बन जाय। नूरजहां ने एक शक्तिमान और बहादुर सर्दार महाबत खां को बुलाया कि जहांगीर की रक्षा और सहायता करे। उसने शीघ्र ही शाहजहां को दखिन की ओर भगा दिया पर नूरजहां को चिन्ता हुई कि कदाचित महाबत खां आप बादशाह बनना चाहे इस कारण उसने उसे दर्बार में बुलाया। उसकी इच्छा यह थी कि वह आ जाय तो उसको मरवा डाले पर महाबत खां राजपूतों की एक ज़बर्दस्त सेना अपने संग लाया था। महाबत खां ने देखा कि जहांगीर डेरों में है, वहीं उसको घेर लिया। यह जहांगीर को किसी प्रकार की हानि पहुंचाना नहीं चाहता था। उसको तो अपने प्राण बचाने थे; इस कारण उसने जहांगीर को जाने न दिया और उसका आदर किया।

१२—कुछ दिन पीछे जहांगीर क़ैद से निकला और नूरजहां से जा मिला। अब महाबत खां को अपने प्राण बचाने की पड़ी और वह भाग कर दखिन में शाहजहां से जा मिला। शाहजहां उसके आने से बहुत प्रसन्न हुआ। [ १८४ ]१३—इसके थोड़े दिनों पीछे जहांगीर मरगया। शाहजहां सिंहासन पर बैठा। नूरजहां के निमित्त एक अच्छा वेतन नियत कर दिया गया। पीछे नूरजहां तीस बरस तक जीती रही पर राज से इसका कुछ सम्बन्ध न था।