भारतवर्ष का इतिहास/३८—शाहजहां

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भारतवर्ष का इतिहास  (1919) 
द्वारा ई॰ मार्सडेन

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३८—शाहजहां।
(सन् १६२७ ई॰ से १६५८ ई॰ तक)

१—शाहजहां से तुर्क पठान की अपेक्षा राजपूत अंश बहुत था। उसकी मां राजपूत राजकुमारी थी और उसका बाप भी राजपूत मां का बेटा था। मुग़ल बादशाहों में उससे बढ़कर राजसी ठाटवाला सम्राट दूसरा न हुआ। तीस बरस के राज्य में उसने ऐसे शहर बसाये और महल मक़बरे और मसजिदें बनवाई जिन से बढ़कर दूसरे इस देश में नहीं हैं।

शाहजहां।

२—सिंहासन पर बैठतेही उसने अपने सब भाइयों और उनकी अनाथ सन्तान को बड़ी निठुराई से मरवा डाला जिससे कोई राजका दावादार न रह जाय।

३—पहिले तो उसने ऐसी निठुराई की पर पीछे अपने राज्य का प्रबंध बहुतही अच्छा किया; और जहांगीर से बहुत बढ़कर निकला। वह न जहांगीर ऐसा आलसी न उतना शराबी था; अपने दादा अकबर की तरह हिन्दू मुसलमान सब को बराबर मानता था। उसकी प्रजा उससे बहुत प्रसन्न थी। राजपूत उसे राजपूत ही मानते थे और इसके बैरियों से लड़ाई में उसका साथ देते थे। [ १८५ ]४—शाहजहां को सिंहासन पर बैठते थोड़ेही दिन बीते थे जब दखिन का सूबेदार खानजहां लोधी बिगड़ गया। अहमदनगर के सुलतान ने इसकी सहायता की। शाहजहां ने अपने सबसे बलवान सेनापति महाबत खां को दक्षिण भेजकर आप भी दल बादल समेत वहीं पहुंचा। दस बरस लगातार लड़ाई होती रही। अन्त को खानजहां मारा गया और अहमदनगर १६३७ ई॰ में मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

मुमताज़ महल।

५—शाहजहां का ब्याह मुमताज़ महल नाम की एक ईरानी महिला के साथ हुआ था। यह नूरजहां की भतीजी थी। मुमताज़ महल अपने पति से बड़ा प्रेम रखती थी। चौदह बरस के सुहाग के पीछे जब उसकी मृत्यु का समय आया तो अपने पति से बोली कि तुम और ब्याह न करना और मेरी समाधि ऐसी बनवाना कि जिससे संसार में मेरा नाम रहे। शाहजहां रो रहा था पर उसने यह दोनों बातें स्वीकार कीं और अपने बचन पर अटल रहा। उसने दूसरा ब्याह न किया और मुमताज़ महल की क़ब्र पर ताज महल बनवाया जो संसार की समस्त समाधियों से बहुमूल्य और सुन्दर है। यह आगरे में यमुना जी के किनारे बना है। और देखने में ऐसा जान पड़ता है मानों कल ही बन कर तैयार हुआ है। इसके बनवाने में तीस बरस लगे थे और लगभग तीस लाख रुपये का ख़र्च बैठा था। [ १८६ ]६—शाहजहां ने एक बड़ी मसजिद दिल्ली में बनवाई जिसको जामामसजिद कहते हैं; एक मसजिद आगरे में भी बनवाई जो मोती मसजिद के नाम से प्रसिद्ध है। संसार में कोई पूजागृह इसकी सुन्दरता को नहीं पहुंचता। शाहजहां का सिंहासन भी ऐसा भड़कीला था कि किसी और राजा को मुयस्सर न हुआ होगा।

(रौज़ा) ताजमहल, आगरा।

इस सिंहासन को "तख़्त ताऊस" कहते थे। एशिया भर में इसकी धूम थी। यह नाचते हुए मोर के आकार का बनाया गया था। मोर के पंख जो उठते हुए बनाये गये थे उनमें हीरा माणिक पन्ना और नीलम जड़े हुए थे। इस पर साढ़े छः करोड़ रुपये की लागत लगी थी।

३—शाहजहां के शासन काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पूर्वीय समुद्रतट पर मदरास का स्थान मोल लेकर सेण्ट जार्ज का क़िला [ १८७ ] बनवाया। बङ्गाले में भी कम्पनी ने एक छोटी सी कोठी बनवाली। यह कलकत्ते से लगभग २५ मील उत्तर हुगली स्थान में थी।

८—शाहजहां ने दखिन के जीतने के निमित्त बड़ा परिश्रम किया। हम ऊपर लिख चुके हैं कि दस बरस के घोर युद्ध के पीछे अहमदनगर हाथ लगा था। लगभग इतना ही समय बीजापुर के भी पराजित करने में बीता। बीजापुर का सुलतान बड़ी बीरता से लड़ा किन्तु उसे हार माननी पड़ी और उसने एक बड़ा वार्षिक कर देना स्वीकार किया। १६५३ ई॰ में शाहजहां ने अपने तीसरे पुत्र औरङ्गजेब को एक बड़ी सेना के साथ सारे दखिन को जीतने के लिये भेजा। वह अकस्मात गोलकुण्डा की रियासत पर चढ़ गया। वहां के सुलतान को एक बड़ा कर देना पड़ा और उसने अपनी बेटी भी औरङ्गजेब के पुत्र शाहज़ादा मुहम्मद को ब्याह दी। इसके पीछे बीदर का क़िला जीता गया। इस समय बीदर का पहिला बादशाह जिसके साथ संधि की गई थी मर चुका था और दो शाहज़ादियां पृथक् पृथक् राज्य की अधिकारिणी होना चाहती थीं। इस कारण औरङ्गजेब फिर बीजापुर पहुंचा। बीजापुर को घेरनेहीवाला था कि उसे बाप की बीमारी का समाचार मिला और वह हिन्दुस्थान लौट चला आया।

९—इस समय दखिन के लोग बड़ी बुरी दशा में थे। दखिन के बादशाहों ने अपने अपने देश उजाड़ दिये थे कि बैरी की सेना को खाने पीने का भी कष्ट भुगतना पड़े। जो कुछ बचा बचाया था वह मुग़ल सैनिकों ने लूट खसोट लिया। पानी न बरसने के कारण कई बरस तक बड़ा विषम काल पड़ा। इसपर एक बला यह और पड़ी कि सारे देश में महामारी फैल गई और बहुतेरे अभागों को समेट कर ले गई। [ १८८ ]१०—शाहजहां के चार पुत्र थे। सबसे बड़े का नाम दारा था। वह बड़ा बीर सुन्दर और शुद्ध प्रकृति का था; पर अभिमानी और अदूरदर्शी भी था। यह भी अकबर की भांति हिन्दू जाति का पक्षपाती था इसी कारण मुसलमान अमीर इस से अप्रसन्न थे। दूसरे का नाम शुजा था। यह भी बड़ा बीर और चतुर था पर अपने दादा की भांति सुरापान और भोगविलास में दिन काटा करता था। तीसरा औरङ्गजेब था, यह ऊंचे हौसले वाला परन्तु कट्टर मुसलमान था। इसने अपने छोटे भाई मुराद से कहा कि मुझे बादशाहत करने की अभिलाषा नहीं है; मैं तो फ़क़ीर बन कर एकान्त में बैठने और परमात्मा का ध्यान करने में अपने दिन काटना चाहता हूं पर मैं इस बात का उद्योग करूंगा कि तुमही राज्य के अधिकारी हो। सब से छोटा बेटा मुराद सुरा और शिकार में मस्त रहता था। जो कुछ औरङ्गजेब ने उससे कहा था आंखें मीच कर उसी को वह सच समझ बैठा। चारो भाइयों के पास अलग अलग बड़ी सेना थी। चारों अलग अलग सूबों के सूबेदार थे। दारा दिल्ली में था, औरङ्गजेब दखिन में, शुजा बङ्गाले में और मुराद गुजरात में।

११—१६५८ ई॰ में शाहजहां बीमार पड़ा। इस समय इसकी आयु ७० बरस की थी और ३० बरस राज्य करते हो गये थे। लोगों ने अनुमान किया कि अब यह मर जायगा। इसके चारों बेटों में राज्य के निमित्त युद्ध होने लगा। पांच बरस तक इनमें युद्ध होता रहा। अन्त में औरङ्गजेब ने सब को परास्त किया और बादशाह बन बैठा। इसने दारा और मुराद को मरवा डाला; शुजा आसाम को भागा यहां के हाकिम ने उसको और उसके बच्चों को मरवाडाला। शाहजहां बीमारी से बच गया उसको औरङ्गजेब ने आगरे के क़िले में कैद कर दिया और वह सात [ १८९ ] बरस पीछे वहां से मरा निकला। शाहजहां ने जैसा किया था वैसा उसे फल मिला। उसने भी अपने बाप जहांगीर से लड़ाई ठानी थी और अपने भाइयों और उनकी सन्तान को मरवा डाला था। देखो तो मुगल वंश के पहिले दो बादशाहों और इन पिछले दो बादशाहों में कितना भेद था। बाबर ने अपने बेटे के निमित्त अपने प्राण दिये। हुमायूं ने कई बार उन भाइयों के अपराध क्षमा किये जो उसकी जान के प्यासे थे। शाहजहां और औरङ्गजेब ने अपने बाप से लड़ाई ठानी और अपने भाइयों को मरवा डाला।