भारत का संविधान/षष्ठ अनुसूची

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भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

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[१]षष्ठ अनुसूची

[अनुच्छेद २४४ (२) और २७५ (१) ]

आसाम में के आदिमजाति-क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उपबन्ध

१. स्वायत्तशासी जिले और स्वायत्तशासी क्षेत्र.—(१) इस कंडिका के उपबन्धों के अधीन रहते हुये इन अनुसूची की कंडिका (२०) से संलग्न सारणी के भाग (क) के प्रत्येक पद में के आदिमजाति-क्षेत्रों का एक स्वायत्तशासी जिला होगा।

(२) यदि किसी स्वायत्तशामी जिले में भिन्न भिन्न अनुमुचित आदिमजातियां हैं तो राज्यपाल लोक-अधिसूचना द्वारा, इन से बसे हुये क्षेत्र या क्षेत्रों को स्वायत्तशासी प्रदेशों में बांट सकेगा।

(३) राज्यपाल लोक-अधिसूचना द्वारा—

(क) उक्त सारणी के भाग (क) में किसी क्षेत्र को डाल सकेगा,
(ख) उक्त सारणी के भाग (क) में से किसी क्षेत्र को अपवर्जित कर सकेगा,
(ग) नया स्वायत्तशासी जिला बना सकेगा;
(घ) किसी स्वायत्तशासी जिले का क्षेत्र बढ़ा सकेगा,
(ङ) किसी स्वायत्तशासी जिले का क्षेत्र घटा सकेगा,
(च) दो या अधिक स्वायत्तशासी जिलों या उन के भागों को मिला कर एक स्वायनशासी जिला बना सकेगा,
(छ) किसी स्वायत्तशासी जिले की सीमायें परिभाषित कर सकेगा,

परन्तु राज्यपाल इस उपकंडिका के खंड (ग), (घ), (ङ) और (च) के अधीन कोई आदेश इस अनुसूची की कंडिका १४ की उपकंडिका (१) के अधीन नियक्त आयोग के प्रतिवेदन पर विचार करने के बाद ही निकालेगा।

२. जिला-परिषदों और प्रादेशिक परिषदों का गठन.—(१) प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले के लिये चौबीस से अनधिक सदस्यों की एक जिला-परिषद् होगी जिन में से तीन चौथाई से अन्यून सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित होंगे।

(२) इस अनुसूची की कंडिका (१) की उपकंडिका (२) के अधीन स्वायत्तशासी प्रदेश के रूप में गठित प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक पृथक प्रादेशिक परिषद् होगी।

(३) प्रत्येक जिला-परिषद् और प्रत्येक प्रादेशिक परिषद् क्रमशः “(जिला का नाम) की जिला-परिषद" और "(प्रदेश का नाम) की प्रादेशिक परिषद" के नाम से निगम-निकाय होगी, उस का शाश्वत उत्तराधिकार होगा और उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी, तथा उक्त नाम से वह व्यवहार-वाद चलायेगी अथवा उस पर व्यवहार-वाद चलाया जायेगा।

(४) इस अनुसूची के उपबन्धों के अधीन रहते हुये स्वायत्तशासी जिले का प्रशासन ऐसे जिले की जिला-परिषद् में वहां तक निहित होगा जहां तक कि वह ऐसे जिले में की किसी प्रादेशिक परिषद् में इस अनुसूची के अधीन निहित नहीं है, तथा स्वायत्तशासी प्रदेश का प्रशासन ऐसे प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् में निहित होगा।

(५) प्रादेशिक परिषद् वाले स्वायत्तशासी जिले में प्रादेशिक परषिद् के प्राधिकाराधीन क्षेत्रों के बारे में जिला-परिषद् की इस अनुसूची द्वारा ऐसे क्षेत्रों के बारे में दी गई शक्तियों के अतिरिक्त केवल ऐसी शक्तियां और होंगी जो उसे प्रादेशिक परिषद् प्रत्यायोजित करे। [ १६६ ]

षष्ठ अनुसूची

(६) राज्यपाल संबद्ध स्वायत्तशासी जिलों या प्रदेशों के अन्तर्गत वर्तमान आदिमजाति-परिषदों अथवा प्रतिनिधान रखने वाले अन्य आदिमजाति संघटनों से परामर्श कर के जिला-परिषदों और प्रादेशिक परिषदों के प्रथम गठन के लिये नियम बनायेगा नशा ऐसे नियमों में निम्नलिखित बातों के लियं उपलब्ध होगे—

(क) जिला-परिषदों और प्रादेशिक परिषदों की रचना तथा उन में स्थानों का बटवारा;
(ख) उन परिषदों के लिये निर्वाचनों के प्रयोजनार्थ प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन;
(ग) ऐसे निर्वाचनों में मतदान के लिये अर्हताएं तथा उन के लिये निर्वाचक नामावलियों का तैयार कराना;
(घ) ऐसे निर्वाचनों में ऐसे परिषदों के सदस्य चुने जाने के लिये अर्हताएं;
(ड.) ऐसी परिषदों के सदस्यों की पदावधि;
(च) ऐसी परिषदों के लिये निर्वाचन या नामनिर्देशन से सम्बद्ध या संसक्त कोई अन्य विषय;
(छ) जिला और प्रादेशिक परिषदों में प्रक्रिया और कार्य-संचालन;
(ज) जिला और प्रादेशिक परिषदों के पदाधिकारियों और कर्मचारी-वृन्द की नियुक्ति।

(७) अपने प्रथम गठन के पश्चात् जिला या प्रादेशिक परिषद् इस कंडिका की उपकंडिका (६) में उल्लिखित विषयों के बारे में नियम बना सकेगी, तथा—

(क) निचली स्थानीय परिषदों या मंडलियों की रचना तथा उनकी प्रक्रिया और उनके कार्य-संचालन का, तथा
(ख) यथास्थिति जिले या प्रदेश के प्रशासन विषयक कार्य सम्पादन से सम्बद्ध समस्त साधारण विषयों का, विनियमन करने वाले नियम भी बना सकेगी।

परन्तु जब तक जिला अथवा प्रादेशिक परिषद द्वारा इस उपकंडिका के अधीन नियम नहीं बनाये जाते तब तक प्रत्येक ऐसी परिषद् के लिये निर्वाचनों के, उसके पदाधिकारियों और कर्मचारी-वृन्द के तथा प्रक्रिया और कार्य-संचालन के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (६) के अधीन राज्यपाल द्वारा बनाये हुए नियम प्रभावी होंगे;

परन्तु यह और भी कि इस अनुसूची की कंडिका (२०) से संलग्न सारणी के भाग (क) में के क्रमशः पद ५ और ६ में के अन्तर्गत क्षेत्रों के बारे में उत्तर कछार और मिकिर पहाड़ियों का यथास्थिति मंडलायुक्त या उपविभागीय पदाधिकारी पदेन जिला-परिषद् का सभापति होगा, तथा जिला परिषद् के प्रथम गठन के पश्चात् छःवर्ष की कालावधि तक राज्यपाल के नियंत्रण के अधीन रहते हुए उसे, जिला-परिषद् के किसी संकल्प या निर्णय को रद्द या रूपभेद करने की अथवा जिला-परिषद् को, जैसी वह उचित समझे, वैसी हिदायतें देने की शक्ति होगी तथा जिला-परिषद् ऐसी दी हुई प्रत्येक हिदायत का अनुवर्तन करेगी।

३. जिला-परिषदों और प्रादेशकि परिषदों की विधि बनाने की शक्ति.-(१) स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को ऐसे प्रदेश के भीतर के सब क्षेत्रों के बारे में, तथा स्वायत्तशासी जिले के भीतर की प्रादेशिक परिषदों के, यदि कोई हों, प्राधिकाराधीन क्षेत्रों को छोड़ कर उस जिले के भीतर के अन्य सब क्षेत्रों के बारे में, निम्नलिखित विषयों के लिये विधियां बनाने की शक्ति होगी—

क) किसी रक्षित वन की भूमि को छोड़ कर अन्य भूमि का, कृषि या चराई के प्रयोजन के लिये अथवा निवास या कृषि से भिन्न अन्य प्रयोजनों के लिये अथवा किसी ऐसे अन्य प्रयोजन के लिये, जिससे किसी ग्राम या नगर के निवासियों के हितों की उन्नति सम्भावनीय हो, बंटन, दखल या उपयोग अथवा अलग रखना;
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परन्तु ऐसी विधियों की किसी बात से अनिवार्य अर्जन प्राधिकृत करने वाली तत्समय प्रवत्त विधि के अनुसार आसाम राज्य को, किसी भूमि के, चाहे वह दखल में हो या न हो, लोक-प्रयोजनार्थ अनिवार्य अर्जन पर रुकावट न होगी,
(ख) रक्षित वन न होने वाले किसी वन का प्रबन्ध;
(ग) कृषि प्रयोजनार्थ किसी नहर या जलधारा का उपयोग;
(घ) झूम की प्रथा का अथवा अन्य प्रकारों की स्थानान्तरणशील कृषि की प्रथा का विनियमन;
(ङ) ग्राम अथवा नगर समितियों या परिषदों की स्थापना और उनकी शक्तियां;
(च) ग्राम या नगर-प्रशासन से सम्बद्ध कोई अन्य विषय जिन के अन्तर्गत ग्राम या नगर आरक्षी और लोक-स्वास्थ्य और स्वच्छता भी है;
(छ) प्रमुखों या मुखियों की नियुक्ति अथवा उत्तराधिकार;
(ज) सम्पत्ति का दायभाग;
(झ) विवाह;
(ञ) सामाजिक रूढ़ियां।

(२) इस कंडिका में "रक्षित वन" से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो आसाम-वन-विनियम १८६१ के अधीन, अथवा प्रश्नास्पद क्षेत्र में किसी दूसरी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन, रक्षित बन है।

(३) इस कंडिका के अधीन निर्मित सब विधियां तुरन्त राज्यपाल के समक्ष रखी जायेंगी और जब तक वह उनको अनुमति न दे दे प्रभावी न होंगी।

४. स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों में न्याय प्रशासन.—(१) स्वायत्तशामी प्रदेशकी प्रादेशिक परिषद् ऐसे प्रदेश के भीतर के क्षेत्रों के बारे में, तथा स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिपद उस जिले के भीतर की प्रादेशिक परिपदों के, यदि कोई हों, प्राधिकाराधीन क्षेत्रों से उस जिले के भीतर के अन्य क्षेत्रों के बारे में, ऐसे व्यवहारवादों और मामलों के परीक्षण के लिये, जिन के सभी पक्ष ऐसे क्षेत्रों के भीतर की अनसूचित आदिमजातियों के ही हैं तथा जो उन व्यवहार-वादों से भिन्न हैं जिन्हें इस अनसूची की कंडिका ५ की उपकंडिका (१) के उपबन्ध लागू होते हैं, उस राज्य के प्रत्येक न्यायालय का अपवर्जन कर के ग्राम-परिपद या न्यायालय गठित कर सकेगी तथा उचित व्यक्तियों को ऐसी ग्राम-परिपदों के सदस्य अथवा ऐसे न्यायालयों के पीठासीन पदाधिकारी नियुक्त कर सकेगी, तथा ऐसे पदाधिकारी भी नियक्त कर सकेगी, जो इस अनुसूची की कंडिका ३ के अधीन बनाई हुई विधियों के प्रशासन के लिये आवश्यक हों।

(२) इस संविधान में किसी बात के होते हए भी स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद अथवा उस प्रादेशिक परिषद् द्वारा उस लिये गठित कोई न्यायालय अथवा, यदि किसी स्वायत्तशासी जिले के अन्तर्गत किसी क्षेत्र के लिये कोई प्रादेशिक परिषद न हो तो ऐसे जिले की जिला-परिषद अथवा उस जिला-परिषद् द्वारा उस लिये गठित कोई न्यायालय, इस अनुसूची की कंडिका ५ की उपकंडिका (१) के उपबन्ध जिन व्यवहार-वादों और मामलों को लागू होते हों उनको छोड़ कर, इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन यथास्थिति ऐसे प्रदेश अथवा क्षेत्र के अन्तर्गत गठित ग्राम-परिषद् अथवा न्यायालय द्वारा परीक्षणीय समस्त व्यवहार-वादों और मामलों में अपीलीय न्यायालय की शक्तियां प्रयोग में लायेगा तथा उच्चन्यायालय और उच्चतमन्यायालय को छोड़ कर किसी दूसरे न्यायालय को ऐसे व्यवहार-वादों अथवा मामलों में क्षेत्राधिकार न होगा।

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) के उपबन्ध जिन व्यवहार-वादों और मामलों को लागू होते हैं उन पर आसाम का उच्चन्यायालय ऐसा क्षेत्राधिकार रखेगा और प्रयोग करेगा जैसा कि समय समय पर राज्यपाल आदेश द्वारा उल्लिखित करे।

(४) यथास्थिति प्रादेशिक परिषद् या जिला-परिषद् राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से—

(क) ग्राम-परिषदों और न्यायालयों के गठन तथा इस कंडिका के अधीन प्रयोक्तव्य उनकी शक्तियों के,
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(स) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन व्यवहार-वादों और मामलों के परीक्षण में परिषदाे या न्यायालया द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के,
(ग) इस कंडिका की उपकंडिका (२) के अधीन अपीलों और अन्य कार्यवाहियों में प्रादेशिक या जिला-परिषद् अथवा ऐसी परिषद् द्वारा संगठित किसी न्यायालय द्वारा अनुसरण को जाने वाली प्रक्रिया के,
(घ) ऐसी परिषदों और न्यायालयों के विनिश्चयों और आदेशों के परिपालन के,
(ड) इस कंडिका की उपकंडिका (१) और (२) के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये अन्य सब सहायक विषयों के, विनियमन के लिये नियम बना सकेगी।

५. कछ वादों,मामलों और अपराधों के परीक्षण के लिये प्रादेशिक और जिला-परिषदों को तथा किन्हीं न्यायालयों और पदाधिकारियों को व्यवहार-प्रक्रिया संहिता १९०८ तथा दंड-प्रक्रिया संहिता १८९८ के अधीन शक्तियों का प्रदान.—(१) राज्यपाल किसी स्वायत्तशासी जिले या प्रदेश में किसी ऐसी प्रवृत विधि से, जिसका उल्लेख राज्यपाल ने उस लिये किया हेे, पैदा हुए व्यवहारवादों या मामलों को परीक्षण के लिये, अथवा भारतीय दंड-संहिता के अधीन अथवा जिले या प्रदेश में तत्समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन मृत्यु, आजीवन कालापानी या पांच वर्ष से अन्यन अवधि के लिये कारावाग मे दंडनीय अपराधो के परीक्षण के लिये ऐसे जिले अथवा प्रदेश पर प्राधिकार रखने वाली जिला-परिषद् या प्रादेगिक परिषद् का अथवा ऐसी जिला-परिषद् द्वारा गठित न्यायालयों को अथवा राज्यपाल द्वारा उस लिये नियुक्त किसी पदाधिकारी को यथास्थिति व्यवहार-प्रत्रिया-संहिता १९०८ के, या दंड-पक्रिया-संहिता १८९८ के अधीन ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकेगा जैसा कि वह समुचित समझे और ऐसा होने पर उक्त परिषद्, न्यायालय या पदाधिकारी इस प्रकार प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में व्यवहार-वादों, मामलों या अपराधों का परीक्षण करेगा।

(२) राज्यपाल किसी जिला-परिषद्, प्रादेशिक परिषद्, न्यायालय या पदाधिकारी को इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन प्रदत्त शक्तियों में से किसी को वापस ले सकेगा या रुपभेद कर सकेगा।

(३) इस कंडिका में स्पष्टतापूर्वक उपवन्धित दशा के अतिरिक्त व्यवहार-प्रक्रिया-संहिता १९०८ और दंड-प्रत्रिया-संहिता १८९८ किसी स्वायत्तशासी जिले में या किसी स्वायत्तशासी प्रदेश में, जिसको इस कंडिका के उपबन्ध लागू होते हैं, किन्हीं व्यवहार-वादों, मामलों या अपराधों के परीक्षण में लागू न होगी।

६. प्राथमिक विद्यालयों आदि को स्थापित करने की जिला परिषद् की शक्ति.—स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद्, जिले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाजारों, कांजीहौस, नौघाट, मीन-क्षेत्र, सड़कों और जल-पथों की स्थापना, निर्माण और प्रबन्ध कर सकेगी तथा विशेषतया जिले में के प्राथमिक विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा जिस भाषा में और जिस रीति से दी जाये, इसका निर्धारण कर सकेगी।

७. जिला और प्रादेशिक निधियां.—(१) प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले के लिये जिला-निधि तथा प्रत्येक स्वायत्तशासी प्रदेश के लिये प्रादेशिक निधि गठित की जायेगी जिसमें क्रमशः उस जिले की जिला- परिषद् द्वारा तथा उस प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् द्वारा यथास्थिति उरा जिले या प्रदेश के इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार प्रशासन करने में प्राप्त सब धनों को जमा किया जायेगा।

(२) यथास्थिति जिला-निधि या प्रादेशिक निधि के प्रबन्ध के लिये जिला-परिषद् और प्रादेगिक परिषद् राज्यपाल के अनुमोदन से नियम बना सकेगी तथा इस प्रकार बने हुए नियम, उक्त निधि में धन के डालने के, उसमें से धन को निकालने के, उस में धन की अभिरक्षा के, तथा उपरोक्त विषयों से संसक्त या इनके सहायक किसी अन्य विषय के, सम्बन्ध में अनुसरणीय प्रक्रिया निर्धारित कर सकेंगे। [ १६९ ]

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८. भू-राजस्व निर्धारित करने तथा संग्रह करने और कर-आरोपण को शक्ति.—(१) स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को ऐसे प्रदेश के अन्तर्गत सब भूमियों के बारे में, तथा यदि जिले में कोई प्रादेशिक परिषद् हो तो उसके प्राधिकाराधीन क्षेत्रों में स्थित भूमियों को छोड़ कर जिलान्तर्गत अन्य सब भूमियों के बारे में, स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद् को ऐसी भूमियों के बारे में,उन सिद्धांतों के अनुसार भू-राजस्व निर्धारण करने और संग्रह करने की शक्ति होगी जो सामान्यतया आसाम राज्य में भू-राजस्व के प्रयोजनार्थ भूमियों के परिगणन में आसाम सरकार द्वारा तत्समय अनुसरण किये जाते है।

(२) स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को, ऐसे प्रदेश के अन्तर्गत क्षेत्रों के बारे मे, तथा यदि जिले में कोई प्रादेशिक परिषद् हो तो उनके प्राधिकाराधीन क्षेत्रों को छोड़ कर जिला मे के अन्य सब क्षेत्रों के बारे में स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद् को, भूमि और इमारतों पर करों को, तथा ऐसे क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों पर पथ-कर को, उद्ग्रहण और संग्रह करने की शक्ति होगी।

(३) स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद् को ऐसे जिले के भीतर निम्न करो में से सबको या किसी को उद्ग्रहण और संग्रह करने की शक्ति होगी, अर्थात्—

(क) वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओ और नौकरियों पर कर;
(ख) पशुओं, यानो और नावों पर कर;
(ग) किसी बाजार में वहां बिकने के लिय वस्तुओ के प्रवेश पर कर तथा नावों से जाने वाले व्यक्तियों और वस्तुओं पर पथ-कर;
(घ) पाठशालाओं, औषधालयो या सड़कों के बनाये रखने के लिये कर।

(४) इस कंडिका की उपकंडिका (२) और (3) में उल्लिखित करों में से किसी के उद्ग्रहण और संग्रह को उपबन्धित करने के लिय यथास्थिति प्रादेशिक परिषद् या जिला-परिषद् विनियम बना सकेगी।

९. खनिजों के खोजने या निकालने के लिये अनज्ञप्तियां या पट्टे.—(१)किसी स्वायत्तशासी जिलान्तर्गत किसी क्षेत्र के बारे मे आसाम सरकार द्वारा खनिजों के खोजने या निकालने के लिये की गई अनुज्ञप्तियों या पट्टों से प्रति वर्ष प्रोद्भूत होने वाले स्वामिस्व का ऐसा अंश उन जिला-परिषद् को दे दिया जायेगा जैसा कि आसाम सरकार और ऐसे जिला की जिला-परिषद् के बीच करार पाये।

(२) जिला-परिषद् को दिये जाने वाले एमे स्वामिस्त्र के अंश के बारे में यदि कोई विवाद पैदा हो तो वह राज्यपाल को निर्धारण के लिये सौंपा जायेगा तथा स्वविवेक से राज्यपाल द्वारा निधारित राशि इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन जिला-परिषद् को देय राशि समझी जायेगी तथा राज्यपाल का विनिश्चय अन्तिम होगा।

१०. आदिमजातियों से भिन्न लोगों को साहूकारी और व्यापार के नियंत्रण के लिये जिला-परिषद् की विनियम बनाने की शक्ति.—(१) स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद् उस जिले में से ऐसे लोगों की, जो उसमें निवास करने वाली आदिम जातियों से भिन्न है, साहूकारी और व्यापार के विनियमन और नियंत्रण के लिये विनियम बना सकगी।

(२) विशेषतया तथा पूर्ववर्ती शक्ति की व्यापकता पर बिना प्रतिकूल प्रभाव डाले ऐसे विनियम–

(क) विहित कर सकेंगे कि उस लिये दी गई अनुज्ञप्ति रखने वाले के अतिरिक्त और कोई साहूकारी का काराबार न करेगा;
(ख) साहूकार द्वारा लगाई जाने या वसूल की जाने वाली ब्याज की अधिकतम दर विहित कर सकेंगे;
(ग) साहूकारों द्वारा लेखा रखने का तथा जिला परिषदों द्वारा उस लिये नियुक्त पदाधिकारियों द्वारा ऐसे लेखाओं के निरीक्षण का उपबन्ध कर सकेंगे।

25-1 Law/57 [ १७० ]

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(घ) विहित कर सकेंगे कि कोई व्यक्ति, जो जिले में निवास करने वाली अनुसूचित आदिमजातियों में का नहीं है, जिला-परिषद् द्वारा उस लिये दी गई अनुज्ञप्ति के बिना किसी वस्तु में थोक या फुटकर कारबार न करेगा।

परन्तु इस कंडिका के अधीन ऐसे विनियम तब तक न बन सकेंगे जब तक कि वे जिला-परिषद् की समस्त सदस्य संख्या के तीन चौथाई से अन्यून बहुमत से पारित न किये जायें:

परन्तु यह और भी कि ऐसे किन्हीं विनियमों के अधीन यह क्षमता न होगी कि जो साहूकार या व्यापारी ऐसे विनियमों के बनने के समय से पूर्व जिले के अन्दर व्यापार करता रहा है, उसको अनुज्ञप्ति देना अस्वीकृत कर दिया जाये।

(३) इस कंडिका के अधीन निर्मित सब विनियम तुरन्त राज्यपाल के समक्ष रखे जायेंगे तथा जब तक वह उनको अनुमति न दे दे प्रभावी न होंगे।

११. इस अनुसूची के अधीन बनी हुई विधियों, नियमों और विनियमों के प्रकाशन.—जिला-परिषद् प्रादेशिक परिषद् द्वारा इस अनुसूची के अधीन बनाई हई सब विधिया, नियम और विनियम राजकीय सूचना-पत्र में तुरन्त प्रकाशित किये जायेंगे और ऐसे प्रकाशन पर व विधिसम प्रभावी होंगे।

१२. स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों पर संसद और राज्य के विधानमंडल के अधिनियमों का लागू होना.—(१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी—

(क)राज्य के विधानमंडल का कोई अधिनियम, जो ऐसे विषयों के बारे में जिनको इस अनुसूची की कंडिका ३ में ऐसा विषय होना उल्लिम्बित किया गया है जिन के बारे में जिला-परिषद् या प्रादेशिक परिषद् विधि बना सकेगी तथा राज्य के विधानमंडल का कोई अधिनियम, जो किसी अनागुत मद्यमारिक पान के उपभोग का प्रतिरोध या निर्बन्धन करता है, किसी स्वायत्तशासी जिले या स्वायत्तशासी प्रदेश को तब तक लागू न होगा जब तक कि दोनों में से प्रत्येक स्थिति में ऐसे जिले की, अथवा ऐसे प्रदेश पर क्षेत्राधिकार रखने वाली, जिला-परिषद् लोक-अधिसूचना द्वारा उस प्रकार निदेश न दे तथा जिला-परिषद् किसी अधिनियम के बारे में ऐसा निदेश देने में यह निदेश भी दे सकेगी कि ऐसे जिले या प्रदेश या उस के किसी भाग पर लागू होने में अधिनियम ऐसे अपवादों या रूपभेदों के साथ प्रभावी होगा जैसे कि वह उचित समझे,
(ख) राज्यपाल लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि संसद का अथवा राज्य के विधान-मंडल का अधिनियम जिसे इस उपकंडिका के खंड (क) के उपबन्ध लागू नहीं होते किसी स्वायत्तशासी जिले या किसी स्वायत्तशासी प्रदेश को लागू न होगा अथवा ऐसे जिले या प्रदेश अथवा उस के किसी भाग को ऐसे अपवादों या रूपभेदों के साथ लागू होगा जैसे कि वह उस अधिसूचना में उल्लिखित करे।

(२) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन दिया हुआ कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकता है कि इसका भूतलक्षी प्रभाव भी हो।

१३. स्वायत्तशासी जिलों से सम्बद्ध प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का वार्षिक-वित्त-विवरण में पृथक् दिखाया जाना.—स्वायत्तशासी जिले से सम्बद्ध प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय, जो आसाम राज्य की संचित निधि में जमा होनी,या से की जानी है, पहिले जिला-परिषद् के सामने चर्चा के लिये रखी जायेंगी तथा ऐसी चर्चा के पश्चात इस संविधान के अनुच्छेद २०२ के अधीन राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखे जाने वाले वार्षिक-वित्त-विवरण में पथक दिखाई जायेंगी। [ १७१ ]

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१४. स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के प्रशासन की जांच करने और उस पर प्रतिवेदन देने के लिये आयोग की नियुक्ति.—(१) राज्यपाल राज्य में के स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के प्रशासन से सम्बद्ध उसके द्वारा उल्लिखित किसी विषय की, जिसके अन्तर्गत इस अनुसूची की कंडिका (१) की उपकंडिका (३) के खंड (ग), (घ), (ङ) और (च) में उल्लिखित विषय भी है, जांच करने और प्रतिवेदन देने के लिये किसी समय भी आयोग नियुक्त कर सकेगा, अथवा राज्य में के स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के साधारणतया प्रशासन की और विशेषतया—

(क) ऐसे जिलों और प्रदेशों में शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं और संचार के उपबन्धों की,
(ख) ऐसे जिलों और प्रदेशों के बारे में किसी नये या विशेष विधान की आवश्यकता की , तथा
(ग) जिला और प्रादेशिक परिषदों द्वारा बनाई गई विधियों, नियमों और विनियमों के प्रशासन की,

समय समय पर जांच करने और प्रतिवेदन देने के लिये आयोग नियुक्त कर सकेगा तथा आयोग द्वारा अनुसरणीय प्रक्रिया को परिभाषित कर सकेगा।

(२) प्रत्येक ऐसे आयोग के प्रतिवेदन को राज्यपाल की तद्विषयक सिपारिशों के साथ सम्बन्धित मंत्री उस पर आसाम सरकार द्वारा की जाने वाली प्रस्थापित कार्यवाही के बारे में व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ राज्य के विधानमंडल के सामने रखेगा।

(३) शासन के कार्य को अपने मंत्रियों में बांटते समय आसाम का राज्यपाल अपने मंत्रियों में से विशेषतया एक को राज्य के स्वायत्तशामी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के कल्याण का भार-साधक बना सकेगा।

१५. जिला या प्रादेशिक परिषदों के कार्यों और संकल्पों का रद्द या निलम्बन करना—(१) यदि किसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाये कि जिला-परिषद् या प्रादेशिक परिषद् के किसी काम या संकल्प से भारत के क्षेम का संकट में पड़ना संभाव्य है तो वह ऐसे काम या संकल्प को रद्द या निलम्बिन कर सकेगा तथा ऐसी कार्यवाही (जिसके अन्तर्गत परिषद् का निलम्बन और परिषद् में निहित या उस मे प्रयोक्तव्य शक्तियों में से सब या किन्ही को अपने हाथ में ले लेना भी है) कर सकेगा जैसी वह ऐसे काम का किये जाने से या चालू रखे जाने से अथवा एसे संकल्प को प्रभावी किये जाने से रोकने के लिये आवश्यक समझे।

(२) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन राज्यपाल द्वारा दिये गये आदेश को, उगके कारणों सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष यथासम्भव शीघ्र रखा जायेगा तथा, यदि आदेश विधानमंडल द्वारा प्रतिसंहृत न कर दिया गया हो तो वह उस प्रकार दिये जाने की तारीख से बारह मास की कालावधि तक प्रवृत्त रहेगा:

परंतु यदि, और जितनी बार, राज्य के विधानमंडल द्वारा ऐसे आदेश के चालू रखने के लिये अनुमोदन का संकल्प पारित होता है तो आदेश, यदि राज्यपाल द्वारा प्रतिसंहृत न कर दिया गया हो तो, उस तारीख से बारह मास की और कालावधि के लिये प्रवृत्त रहेगा जिस तारीख को कि इस कंडिका के अधीन वह अन्यथा प्रवतनशून्य होता।

१६. जिला या प्रादेशिक परिषद् का विघटन.--इस अनुसूची की कंडिका १४ के अधीन नियुक्त आयोग की सिपारिश पर राज्यपाल लोक-अधिसूचना द्वारा किसी प्रादेशिक या जिला-परिषद् का विघटन कर सकेगा, तथा-

(क) परिषद् के पुनर्गठन के लिये तुरन्त ही नया साधारण निर्वाचन करने के लिये निदेश दे सकेगा, अथवा
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षष्ठ अनुसूची

(ख) राज्य के विधानमंडल के पूर्व अनुमोदन से ऐसी परिषद् के प्राधिकाराधीन क्षेत्र के प्रशासन को राज्यपाल अपने हाथ में ले सकेगा अथवा ऐसे क्षेत्र के प्रशासन के ऐसे आयोग के, जो उक्त कंडिका के अधीन नियुक्त हआ है, अथवा अन्य किसी निकाय के, जिसे वह समुपयुक्त समझता है हाथ में बारह से अनधिक मास की कालावधि के लिये दे सकेगा:

परन्तु जब इस कंडिका के खंड (क) के अधीन कोई आदेश दिया गया हो तब राज्यपाल प्रश्नास्पद क्षेत्र के प्रशासन के बारे में साधारण निर्वाचन होने पर परिषद् के पुनर्गठन के प्रश्न के लम्बित रहने तक इस कंडिका के खंड (ख) में निर्दिष्ट कार्यवाही कर सकेगा :

परन्तु यह और भी कि यथास्थिति जिला या प्रादेशिक परिषद् को, राज्य के विधानमंडल के सामने अपने विचारों को रखने का अवसर दिये विना इस कंडिका के खंड (ख) के अधीन कोई कार्यवाही न की जायेगी।

१७. स्वायत्तशासी जिलों में निर्वाचन-क्षेत्रों के बनाने के हेतु ऐसे जिलों से क्षेत्रों का अपवर्जन.—आसाम की विधान-सभा के निर्वाचनों के प्रयोजन के लिये राज्यपाल आदेश द्वारा घोषित कर सकेगा कि किसी स्वायत्तशासी जिले के अन्दर का कोई क्षेत्र ऐसे किसी जिले के लिये सभा में रक्षित स्थान या स्थानों के भरने के लिये किसी निर्वाचन क्षेत्र का भाग न होगा, किन्तु इस प्रकार रक्षित न हुए सभा में के स्थान या स्थानों के भरने के लिये प्रादेश में उल्लिखित निर्वाचनक्षेत्र का भाग होगा।

१८. कंडिका २० से संलग्न सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित क्षेत्रों पर इस अनुसूची के उप-बंधों का लागू होना.—(१) राज्यपाल—

(क) राष्ट्रपति के पूर्वानमोदन से लोक-अधिसूचना द्वारा इस अनसूची के पूर्वगामी सब अथवा किन्हीं उपबन्धों को कंडिका २० से संलग्न सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित किसी मादिमजाति-क्षेत्र को, अथवा ऐसे क्षेत्र के किसी भाग को, लाग कर सकेगा तथा ऐसा होने पर ऐसे क्षेत्र का या भाग का प्रशासन ऐसे उपबन्धों के अनुसार होगा, तथा
(ख) ऐसे ही अनुमोदन से लोक-अधिसूचना द्वारा, उक्त सारणी से उस सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित किसी आदिमजाति क्षेत्र को प्रथवा उसके किसी भाग को अपवर्जित कर सकेगा।

(२) उक्त सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित किसी आदिमजाति-क्षेत्र अथवा ऐसे क्षेत्र के किसी भाग के बारे में जब तक इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन मधिसूचना नहीं निकाली जाती तब तक यथास्थिति ऐसे क्षेत्र अथवा उसके भाग का प्रशासन राष्ट्रपति, आसाम के राज्यपाल द्वारा, जो उसके अभिकर्ता के रूप में होगा, करेगा तथा इस संविधान के [२][अनुच्छेद २४०] के उपबन्ध उसमें इस प्रकार लागू होंगे मानो कि ऐसा क्षेत्र या उसका भाग [३][उस अनुच्छेद में उल्लिखित संघ राज्य-क्षेत्र है।]

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) के अधीन राष्ट्रपति के अभिकर्ता के रूप में अपने कृत्यों के निर्वहन में राज्यपाल अपने स्वविवेक से कार्य करेगा।

१९. अन्तर्कालीन उपबन्ध—(१) इस संविधान के प्रारम्भ के पश्चात् यथासम्भव शीघ्र इस अनुसूची के अधीन राज्यपाल राज्य में के प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले के लिये जिला-परिषद् के गठन के लिये अग्रसर होगा तथा जब तक किसी स्वायत्तशासी जिले के लिये जिला परिषद इस प्रकार गठित न हो तब तक ऐसे जिले का प्रशासन राज्यपाल में निहित होगा तथा ऐसे जिले के भीतर के क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इस अनुसूची में दिये पूर्वगामी उपबन्धों के स्थान पर निम्नलिखित उपबन्ध लागू होंगे, अर्थात्:—

(क) संसद का अथवा उस राज्य के विधानमंडल का कोई अधिनियम ऐसे क्षेत्र में तब तक लागू न होगा जब तक कि राज्यपाल लोक-अधिसूचना द्वारा ऐसा होने का निदेश न दे, तथा किसी अधिनियम के बारे में राज्यपाल ऐसा निदेश देते हुए यह निदेश दे सकेगा कि वह अधिनियम किसी क्षेत्र अथवा उसके किसी उल्लिखित भाग में ऐसे अपवादों और रूपभेदों सहित लागू होगा जिनको वह उचित समझे;
[ १७३ ]

षष्ठ अनुसची

(ख) ऐसे किसी क्षत्र की शान्ति और सुशासन के लिये राज्यपाल विनियम बना सकेगा तथा इस प्रकार बने विनियम ऐसे क्षेत्र में तत्समय लागू होने वाले संसद के, अथवा उम राज्य के विधानमंडल के, किसी अधिनियम को, या किसी वर्तमान विधि को निरसित या संशोधित कर सकेंगे।

(२) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के खंड (क) के अधीन राज्यपाल द्वारा दिया हुया कोई निदेश इस प्रकार दिया जा सकता है कि उस का भूतलक्षी प्रभाव भी हो।

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के खंड (ख) के अधीन निर्मित सब विनियम तुरन्त राष्ट्रपति के समक्ष रखे जायेंगे तथा जब तक वह उन को अनुमति न दे दे प्रभावी न होंगे।

२०. आदिमजाति-क्षेत्र.—(१) निम्न सारणी के भाग (क) और (ख) में उल्लिखित क्षेत्र आसाम राज्य के भीतर आदिमजाति-क्षेत्र होंगे।

(२) शिलौंग, कटक और नगर-क्षेत्र के अन्तर्गत तत्समय समाविष्ट किन्हीं क्षेत्रों को अपवजित कर के किन्तु शिलौंग के नगर-क्षेत्र के अन्दर समाविष्ट इतने क्षेत्र को, जितना कि मिललैम खासी राज्य का भाग था, सम्मिलित कर के खासी राज्य तथा खासी और जयंतीया पहाड़ी जिले के नाम से इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व ज्ञात क्षेत्रों से मिल कर संयुक्त खामी जयंतीया पहाड़ी जिला बनेगा :

परन्तु इस अनुसूची की कंडिका ३ की उपकंडिका (१) के खंड (ङ) और (च), कंडिका ४, कंडिका ५, कंडिका ६, कंडिका ८ की उपकंडिका (२), उपकंडिका (३) के खंड (क), (ख) और (घ) और उपकंडिका (४) तथा कंडिका १० की उपकंडिका (२) के खंड (घ) के प्रयोजनों के लिये शिलौंग के नगर-क्षेत्र में समाविष्ट कोई क्षेत्र उस जिले के अन्दर नहीं समझे जायेंगे।

[४][(२क) मोजो जिले में वह क्षेत्र समाविष्ट होगा जो इस संविधान के प्रारम्भ पर लुसाई पहाड़ी जिला के नाम से ज्ञात था।]

[५][२ख) नागा पहाड़ी त्युनसांग क्षेत्र में वे क्षेत्र समाविष्ट होंगे जो इस संविधान के प्रारम्भ पर नागा पहाड़ी जिला और नागा आदिमजाति क्षेत्र के नाम से ज्ञात थे]

(३) निम्न सारणी में [४](संयुक्त खासी जयंतीया पहाड़ी जिले से अन्य) किसी जिले के या [५](नागा पहाड़ी त्युनसांग क्षेत्र से भिन्न)] प्रशासी क्षेत्र के प्रति कोई निर्देश उस जिले या प्रदेश के प्रति इम संविधान के प्रारम्भ पर निर्देश समझा जायेगा :

परन्तु निम्न सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित आदिमजाति-क्षेत्रों के अन्तर्गत, मैदानों म के, कोई ऐसे क्षेत्र न होंगे जैसे कि राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन से आसाम का राज्यपाल उस लिये अधिसूचित करे।

सारणी

भाग (क)

१. संयुक्त खासी-जयंतीया पहाडी जिला।

२. गारो पहाड़ी जिला।

३. [६][मीजो जिला]

४. [७]******

५. उत्तरी कछार पहाड़ियां।

६. मिकिर पहाड़ियां। [ १७४ ]

'शष्ठ अनुसूची

भाग (ख)

१. उत्तरी पूर्वीय सीमान्त इलाका जिसके अन्तर्गत बालिपारा सीमान्त इलाका, तिराप सीमान्त इलाका, अबोर पहाड़ी जिला और मिसिमि पहाड़ी जिला भी हैं।

२. [८][नागा पहाडी त्युनसांग क्षेत्र]

२१. अनुसूची का संशोधन.—(१) संसद् समय समय पर विधि द्वारा जोड़, परिवर्तन, या निरसन करके इस अनुसूची के उपबन्धों में से किसी का संशोधन कर सकेगी, तथा जब अनुसूची इस प्रकार संशोधित की जाये, तब इस संविधान में इस अनुसूची के प्रति कोई निर्देश इस प्रकार संशोधित अनुसूची के प्रति निर्देश समझा जायेगा।

(२) कोई ऐसी विधि, जो इस कंडिका की उपकंडिका (१) में वर्णित है इस संविधान के अनुच्छेद ३६८ के प्रयोजनों के लिये इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जायेगी।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगी।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित।
  3. उपरोक्त के ही द्वारा "प्रथम अनुसूची के भाग (घ) में उल्लिखित राज्यक्षेत्र है" के स्थान पर रखे गये।
  4. ४.० ४.१ लुसाई पहाड़ी जिले (नाम परिवर्तन) अधिनियम, १९५४, (१९५४ का १८) धारा ३ द्वारा अन्तः-स्थापित।,
  5. ५.० ५.१ नागा पहाड़ी त्युनसांग क्षेत्र अधिनियम, १९५७, धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित।,
  6. उपरोक्त के ही द्वारा प्रतिस्थापित।
  7. नागापहाडी त्यनसांग क्षेत्र अधिनियम, १९५७, धारा ३ द्वारा लप्त कर दिया गया।
  8. नागा पहाड़ी त्युनसांग क्षेत्र अधिनियम, १९५७ धारा ३ द्वारा "नागा आदिमजाति-क्षेत्र" के स्थान में रखे गये।