भ्रमरगीत-सार/११४-ऊधो! तुम अति चतुर सुजान
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ऊधो! तुम अति चतुर सुजान।
जे पहिले रँग रंगी स्यामरँग तिन्हैं न चढ़ै रँग आन॥
द्वै लोचन जो विरद किए स्रुति गावत एक समान[१]।
भेद चकोर कियो तिनहू में बिधु प्रीतम, रिपु भान॥
बिरहिनि बिरह भजै पा लागों तुम हौ पूरन-ज्ञान।
दादुर जल बिनु जियै पवन भखि, मीन तजै हठि प्रान॥
बारिजबदन नयन मेरे पटपद कब करिहैं मधुपान?
सूरदास गोपीन प्रतिज्ञा, छुवत न जोग बिरान[२]॥११४॥