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भ्रमरगीत-सार/११३-मधुकर! राखु जोग की बात

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३०

 

राग सारंग
मधुकर! राखु जोग की बात।

कहि कहि कथा स्यामसुंदर की सीतल करु सब गात॥
तेहि निर्गुन गुनहीन गुनैबो सुनि सुंदरि अनखात।
दीरघ नदी नाव कागद की को देख्यो चढ़ि जात?
हम तन हेरि, चितै अपनो पट देखि पसारहि लात।
सूरदास वा सगुन छाँड़ि छन जैसे कल्प बिहात॥११३॥