भ्रमरगीत-सार/११६-ऊधो, हम अजान मतिभोरी
दिखावट
ऊधो, हम अजान मतिभोरी।
जानति हैं ते जोग की बातें नागरि नवल किसोरी॥
कंचन को मृग कौनै देख्यौ, कोनै बाँध्यो डोरी?
कहु धौं, मधुप! बारि मथि माखन कौने भरी कमोरी[१]?
बिन ही भीत चित्र किन काढ्यो, किन नभ बाँध्यो झोरी?
कहौ कौन पै कढ़त कनूकी[२] जिन हठि भूसी पछोरी॥
यह ब्यवहार तिहारो, बलि बलि! हम अबला मति थोरी।
निरखहिं सूर स्याम-मुख चंदहि अँखिया लगनि-चकोरी॥११६॥