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इक हरि हमैं अनाथ करि छाँड़ी दुजे बिरह किमि सहिए? ज्यों ऊजर खेरे[१] की मूरति को पूजै, को मानै? ऐसी हम गोपाल बिनु उधो! कठिन बिथा को जानै? तन मलीन, मन कमलनयन सों मिलिबे की धरि आस। सूरदास स्वामी बिन देखे लोचन मरत पियास॥११७॥