भ्रमरगीत-सार/११७-ऊधो! कमलनयन बिनु रहिए

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राग गौरी
ऊधो! कमलनयन बिनु रहिए।

इक हरि हमैं अनाथ करि छाँड़ी दुजे बिरह किमि सहिए?
ज्यों ऊजर खेरे[१] की मूरति को पूजै, को मानै?
ऐसी हम गोपाल बिनु उधो! कठिन बिथा को जानै?
तन मलीन, मन कमलनयन सों मिलिबे की धरि आस।
सूरदास स्वामी बिन देखे लोचन मरत पियास॥११७॥

  1. खेरी=गाँव।