भ्रमरगीत-सार/१२४-ऊधोजू! देखे हौ ब्रज जात

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राग केदारो
ऊधोजू! देखे हौ ब्रज जात।

जाय कहियो स्याम सों या विरह को उत्पात॥
नयनन कछु नहिं सूझई, कछु श्रवन सुनत न बात।
स्याम बिन आंसुवन बूड़त दुसह धुनि भइ बात॥
आइए तो आइए, जिय बहुरि सरीर समात।
सूर के प्रभु बहुरि मिलिहौ पाछे हू पछितात॥१२४॥