भ्रमरगीत-सार/१२५-ऊधो! बेगि मधुबन जाहु

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राग नट
ऊधो! बेगि मधुबन जाहु।

जोग लेहु संभारि अपनो बेंचिए जहँ लाहु[१]
हम बिरहिनी नारि हरि बिनु कौन करै निबाहु?
तहां दीजै मूर पूजै[२], नफा कछु तुम खाहु॥

[ १३५ ]

जौ नहीं ब्रज में बिकानो नगरनारि बिसाहु।
सूर वै सब सुनत लैहैं जिय कहा पछिताहु॥१२५॥

  1. लाहु=लाभ।
  2. मूर पूजै=मूल धन निकल आए।