भ्रमरगीत-सार/१३-कोऊ आवत है तन स्याम

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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उद्धव का ब्रज में आना

राग मलार

कोऊ आवत है तन स्याम।

वैसेइ पट, वैसिय रथ-वैठनि, वैसिय है उर दाम॥
जैसी हुतिं उठि तैसिय दौरीं छाँड़ि सकल गृह-काम।
रोम पुलक, गदगद भई तिहि छन सोचि अंग अभिराम॥
इतनी कहत आय गए ऊधो, रहीं ठगी तिहि ठाम।
सूरदास प्रभु ह्याँ क्यों आवै बंधे कुब्जा-रस स्याम॥१३॥