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जिनको तुम तजि भजत प्रीति बिनु करत कुसुमरस-केली॥ बारे[१] तें बलबीर[२] बढ़ाई पोसी प्याई पानी। बिन पिय-परस प्रात उठि फूलन होत सदा हित-हानी॥
ये बल्ली बिहरत बृंदावन अरुझीं स्याम-तमालहिं। प्रेमपुष्प-रस-बास हमारे बिलसत मधुप गोपालहिं॥ जोग-समीर धीर नहिं डोलत, रूपडार-ढिग लागी। सूर पराग न तजत हिये तें कमल-नयन-अनुरागी॥१४०॥