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जिनको ध्यान धरे उर-अंतर आनहिं नए न उन बिंन सीस॥ जोगिन जाय जोग उपदेसौ जिनके मन दस बीस। एकै मन, एकै वह मूरति, नित बितवत दिन तीस॥ काहे निर्गुन-ज्ञान आपुनो जित तित डारत खीस[१]। सूर प्रभू नंदनंदन हैं उनतें को जगदीस?॥१४१॥