भ्रमरगीत-सार/१४१-मधुकर! स्याम हमारे ईस
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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३८
जिनको ध्यान धरे उर-अंतर आनहिं नए न उन बिंन सीस॥
जोगिन जाय जोग उपदेसौ जिनके मन दस बीस।
एकै मन, एकै वह मूरति, नित बितवत दिन तीस॥
काहे निर्गुन-ज्ञान आपुनो जित तित डारत खीस[१]।
सूर प्रभू नंदनंदन हैं उनतें को जगदीस?॥१४१॥