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भ्रमरगीत-सार/१४९-मधुकर! तौ औरनि सिख देहु

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४१

 

राग धनाश्री
मधुकर! तौ औरनि सिख देहु।

जानौगे जब लागैगो, हो, खरो कठिन है नेहु॥
मन जो तिहारो हरिचरनन-तर, तन धरि गोकुल आयो।
कमलनयन के संग तें बिछुरे कहु कौने सचु पायो?
ह्याँई रहौ जाहु जनि मथुरा, झूठो माया-मोहु।
गोपी सूर कहत ऊधो सों हमहीं से तुम होहु॥१४९॥