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भ्रमरगीत-सार/१५५-मधुकर! कौन गाँव की रीति

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४३ से – १४४ तक

 

राग सोरठ
मधुकर! कौन गाँव की रीति?

ब्रजजुवतिन को जोग-कथा तुम कहत सबै बिपरीति॥
जा सिर फूल फुलेल मेलिकै हरि-कर ग्रंथैं छोरी।
ता सिर भसम, मसान पै सेवन, जटा करत आघोरी॥
रतनजटित ताटंक बिराजत अरु कमलन की जोति।
तिन स्रवनन पहिरावत मुद्रा तोहिं दया नहिं होति॥
बेसरि नाक, कंठ मनिमाला, मुखनि सार असवास।
तिन मुख सिंगी कहौ बजावन, भोजन आक, पलास॥
जा तन को मृगमद घसि चंदन सूछम[] पट पहिराए।
ता तन को रचि चीर पुरातन दै ब्रजनाथ पठाए॥

वै अबिनासी ज्ञान घटैगो यहि बिधि जोग सिखाए।
करैं भोग भरिपूर सूर तहँ, जोग करैं ब्रज आए॥१५५॥

  1. सूछम=महीन।