बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४५
अब हरि गोकुल कांहे को आवहिं चाहत नवयौवनियाँ॥ वे दिन माधव भूलि बिसरि गए गोद खिलाए कनियाँ। गुहि गुहि देते नंद जसोदा तनक कांच के मनियाँ[१]॥ दिना चारि तें पहिरन सीखे पट पीतांबर तनियाँ[२]। सूरदास प्रभु तजी कामरी अब हरि भए चिकनियाँ[३]॥१५९॥