भ्रमरगीत-सार/१६१-कहाँ लगि मानिए अपनी चूक

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कहाँ लगि मानिए अपनी चूक?

बिन गोपाल, ऊधो, मेरी छाती ह्वै न गई द्वै टूक॥
तन, मन, जौबन वृथा जात है ज्यों भुवंग की फूँक।
हृदय अग्नि को दवा बरत है, कठिन बिरह की हूक[१]

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जाकी मनि हरि लई सीस तें कहा करै अहि मूक?
सूरदास ब्रजबास बसीं हम मनहूँ दाहिने सूक[२]

  1. हूक=ज्वाला, व्यथा, शूल।
  2. दाहिने सूक=इक्षिण शूक्रग्रह होने पर (जो ज्योतिष में बुरा योग माना जाता है)।