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भ्रमरगीत-सार/१६२-ऊधों! जोग जानै कौन

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४६

 

राग कल्याण
ऊधों! जोग जानै कौन?

हम अबला कह जोग जानैं जियत जाको रौन[]
जोग हमपै होय न आवै, धरि न आवै मौन।
बाँधिहैं क्यों मन-पखेरू साधिहैं क्यों पौन?
कहौ अंबर पहिरि कै मृगछाल ओढ़ै कौन?
गुरु हमारे कूबरी-कर-मंत्र-माला जौन॥
मदनमोहन बिन हमारे परै बात न कौन[]?
सूर प्रभु कब आयहैं वे श्याम दुख के दौन[]?॥१६२॥

  1. रौन=रमण करने वाला, पति।
  2. परै......कौन=कोई बात मन में नहीं पड़ती अर्थात् बैठती।
  3. दौन=दमन करनेवाले।