हम अबला कह जोग जानैं जियत जाको रौन[१]॥
जोग हमपै होय न आवै, धरि न आवै मौन।
बाँधिहैं क्यों मन-पखेरू साधिहैं क्यों पौन?
कहौ अंबर पहिरि कै मृगछाल ओढ़ै कौन?
गुरु हमारे कूबरी-कर-मंत्र-माला जौन॥
मदनमोहन बिन हमारे परै बात न कौन[२]?
सूर प्रभु कब आयहैं वे श्याम दुख के दौन[३]?॥१६२॥